Saturday, September 25, 2010

बस एक झलक ...

ना मालूम उसका
मेरी गली में फिर आना हो ना हो
या मेरा ही कभी 
उसके घर जाना हो ना हो
मिल लूँ बस एक झलक 
पलक झपकते ही उसे
शायद फिर कभी 
पलक झपकने का बहाना हो ना हो ...

10 comments:

  1. आशा का सन्देश देती हुई!
    --
    बहुत खूबसूरत क्षणिका है!

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  2. "मिल लूँ बस एक झलक पलक झपकते ही उसे...
    शायद फिर कभी पलक झपकने का बहाना हो ना हो "

    बहुत बढ़िया

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  3. हमेशा की तरह ये पोस्ट भी बेह्तरीन है
    कुछ लाइने दिल के बडे करीब से गुज़र गई....

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  4. बेहतरीन भाव ...हर एक दिल में कभी न कभी ऐसी भावनाएं जागती हैं ! दिल से निकली हुई आवाज लगती है यह !

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  5. बहुत बड़ी ख्वाहिश है आपकी ...एक झलक में फलक भी समेट सकते हैं हम अपने अंतर्मन में !

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  6. अर्चना जी,
    आप पलक झपकने का बहाना सोचियो कईसे सकती हैं, यहाँ तो लोगों का कहना है कि
    कागा सब तन खाइयो, चुन चुन खाइयो माँस
    दो नैना मत खाइयो, जिन्हे पिया मिलन की आस!

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति

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  8. बहुत अच्छी प्रस्तुति.धन्यवाद

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  9. इस छोटी सी कविता में पूरा उपन्यास समाया हुआ है। ...बहुत सुंदर कविता।

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  10. वाह क्या बात कह दी………………गज़ब कर दिया।

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