एक गीत फ़िरदौस की डायरी से..
तुमसे तन-मन मिले प्राण प्रिय! सदा सुहागिन रात हो गई
होंठ हिले तक नहीं लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
राधा कुंज भवन में जैसे
सीता खड़ी हुई उपवन में
खड़ी हुई थी सदियों से मैं
थाल सजाकर मन-आंगन में
जाने कितनी सुबहें आईं, शाम हुई फिर रात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
तड़प रही थी मन की मीरा
महा मिलन के जल की प्यासी
प्रीतम तुम ही मेरे काबा
मेरी मथुरा, मेरी काशी
छुआ तुम्हारा हाथ, हथेली कल्प वृक्ष का पात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
रोम-रोम में होंठ तुम्हारे
टांक गए अनबूझ कहानी
तू मेरे गोकुल का कान्हा
मैं हूं तेरी राधा रानी
देह हुई वृंदावन, मन में सपनों की बरसात हो गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
सोने जैसे दिवस हो गए
लगती हैं चांदी-सी रातें
सपने सूरज जैसे चमके
चन्दन वन-सी महकी रातें
मरना अब आसान, ज़िन्दगी प्यारी-सी सौगात ही गई
होंठ हिले तक नहीं, लगा ज्यों जनम-जनम की बात हो गई
-फ़िरदौस ख़ान
अर्चना जी
ReplyDeleteआपने हमारे इस गीत को अपनी मधुर आवाज़ से और भी दिलकश बना दिया है...
हम आपके तहे-दिल से शुक्रगुज़ार हैं...
adabhut hai Chhutakee kaa geet aapake sur ne geet kaa shrangar kar diya
ReplyDeleteगीत और स्वर बहुत सुन्दर है!
ReplyDeleteइतनी उत्कृष्ट जुगलबन्दी के लिये अतिशय बधाइयाँ।
ReplyDeleteGeet pahle hi itna khoobsoorat tha ki sanjone yogya lag raha tha.. madhur aawaz ne iske saath poora nyaay kiya aur karnpriya bhee bana diya. Badhai Firdaus ji
ReplyDeleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeletedipak mashal ji se sahmat hoon
ReplyDeleteआदरणीय अर्चना जी
ReplyDeleteनमस्कार !
..............बहुत खूब, लाजबाब !
बहुत उत्तम!
ReplyDeletenice
ReplyDeleteयहाँ तक पहुचने में मुझे काफी वक़्त लग गया ...लेकिन आपकी आवाज़ में ये मधुर गीत सुन के आनंद से परिपूर्ण हुई.. दिल से धन्यवाद :)
ReplyDeleteऔर आपसे बिना इज़ाज़त ये गीत ले अपने पास रख ली ... :)
Really koi jawab nahi hai is rachna ke liye. .Bahut sunder kaha jay to bhi kam hai.
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