Monday, January 24, 2011

काश...

वत्स भीष्म ,
काश तुम अपनी प्रतिज्ञा तोड़ देते
तो क्या हमें
तुम जैसे -दो चार या ज्यादा
शूरवीर,बलवान,धैर्यशील,गुणवान
वीर और न मिलते?
कितना अच्छा होता यदि तुम
ये प्रतिज्ञा न करते
और बदले में इसके
इसे लेने को
दुर्योधन को प्रेरित करते
ये तुमने अच्छा नहीं किया
तुम तो एक बार बस
बाणों पर सो गए
और इतनी अन्दर तक
बाणों की नोकों को
हमें चुभो गए
आज तक हम
इस पीड़ा को भोग रहें है
और अब भी कही
दाउद और ड़ोंन जन्म ले रहें है.............


13 comments:

  1. क्या बात है, क्या बात है , कमाल कर दिया आपने, ऐसी कविता पहले कहीं नहीं पढ़ी , लाजवाब प्रस्तुति ।

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  2. तुम तो एक बार बस
    बाणों पर सो गए
    और इतनी अन्दर तक
    बाणों की नोकों को
    हमें चुभो गए...

    बहुत सुन्दर...काश..पर अब सोचने से क्या मिलेगा..

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  3. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

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  4. सच कह रही हैं, तब का निर्णय आज का उत्थान होता।

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  5. हमेशा की तरह से लाजवाव जी धन्यवाद

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  6. कमाल की कविता.. बिल्कुल अवाक कर देती है.. एक नया नज़रिया देखने का अपने पौराणिक हीरोज़ को!!

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  7. सही प्रश्न उठाया है। आपकी कविता तो पौराणिक पात्रों पर आधारित है, हमें चचा याद आ गये,
    "हुई मुद्दत कि गालिब मर गया, पर अब भी याद आता है,
    वो हर एक बात पर कहना, कि ये होता तो क्या होता"

    यही होना था जो हुआ।

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  8. यक़ीनन ...शायद आज स्थिति कुछ और ही होती ......

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  9. शायद तब इतिहास दूसरा होता…………सुन्दर भावाव्यक्ति।

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  10. इतिहास बहुत कुछ कहता है ..काश ऐसा हुआ होता ....पर जो नियति है वही होता है ....बहुत अच्छी प्रस्तुति

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  11. अर्चना जी, इस छोटी सी कविता के बहाने आपने बहुत बडी बात कह दी।

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    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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  12. क्या बात है !
    बहुत ही सुंदर रचना !!

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