Wednesday, February 9, 2011

स्वप्न झरे.....गोपालदास "नीरज"जी का गीत ...

स्वप्न झरे फ़ूल से -----नीरज
स्वर- अर्चना चावजी





स्वप्न झरे फूल से,
मीत चुभे शूल से,
लुट गये सिंगार सभी बाग़ के बबूल से,
और हम खड़े-खड़े बहार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

नींद भी खुली न थी कि हाय धूप ढल गई,
पाँव जब तलक उठे कि ज़िन्दगी फिसल गई,
पात-पात झर गये कि शाख़-शाख़ जल गई,
चाह तो निकल सकी न, पर उमर निकल गई,
गीत अश्क़ बन गए,
छंद हो दफ़न गए,
साथ के सभी दिऐ धुआँ-धुआँ पहन गये,
और हम झुके-झुके,
मोड़ पर रुके-रुके
उम्र के चढ़ाव का उतार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

क्या शबाब था कि फूल-फूल प्यार कर उठा,
क्या सुरूप था कि देख आइना मचल उठा
इस तरफ जमीन और आसमां उधर उठा,
थाम कर जिगर उठा कि जो मिला नज़र उठा,
एक दिन मगर यहाँ,
ऐसी कुछ हवा चली,
लुट गयी कली-कली कि घुट गयी गली-गली,
और हम लुटे-लुटे,
वक्त से पिटे-पिटे,
साँस की शराब का खुमार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

हाथ थे मिले कि जुल्फ चाँद की सँवार दूँ,
होंठ थे खुले कि हर बहार को पुकार दूँ,
दर्द था दिया गया कि हर दुखी को प्यार दूँ,
और साँस यूँ कि स्वर्ग भूमी पर उतार दूँ,
हो सका न कुछ मगर,
शाम बन गई सहर,
वह उठी लहर कि दह गये किले बिखर-बिखर,
और हम डरे-डरे,
नीर नयन में भरे,
ओढ़कर कफ़न, पड़े मज़ार देखते रहे
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे!

माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरण-चरण,
शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,
पर तभी ज़हर भरी,
ग़ाज एक वह गिरी,
पुंछ गया सिंदूर तार-तार हुई चूनरी,
और हम अजान से,
दूर के मकान से,
पालकी लिये हुए कहार देखते रहे।
कारवां गुज़र गया, गुबार देखते रहे।

10 comments:

  1. amar geet.....badhai sundar chaya k liye.

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  2. नीरज जी का यह सदाबहार और कालजयी गीत है!
    बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  3. बहुत गहरा गीत लगता है यह।

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  4. अति सुंदर गीत, धन्यवाद

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  5. मेरा पसंदीदा गीत..बहुत अच्छी तरह गाया..बधाई.

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  6. नीरज जी का यह गीत बहुत मशहूर हुआ था |मुझे यह सौभाग्य मिला था कि मैंने उन्हीं के मुंह से यह गीत कविसम्मेलन में सूना था |आपनें उस याद को ताजा कर दिया |
    आशा

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  7. इस गाने की तोबात ही निरालीहै।

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  8. मेरा बहुत पसंदीदा गीत है, फ़ोन में डाले गिने चुने गानों में से एक।

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  9. माँग भर चली कि एक, जब नई-नई किरन,
    ढोलकें धुमुक उठीं, ठुमक उठे चरण-चरण,
    शोर मच गया कि लो चली दुल्हन, चली दुल्हन,
    गाँव सब उमड़ पड़ा, बहक उठे नयन-नयन,

    neeraj jee ki rachna ka jabab nahi..!!
    aur aapne to unke baag se behtareen wale phool chun kar laye ho..:)

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