Friday, March 18, 2011

एक बहुत जरूरी पॉडकास्ट-------उत्तम लिखने वालों के लिए------"मेरी कलम से"----सुनना न भूलें ------

 आज एक ऐसा ब्लॉग जिसे पढ़कर बस ...............दिल से जो निकला वही कहा----
 

और एक नजर---इस आत्मीय वार्तालाप पर भी --कुछ अंश बातचीत के---- मेरे लिए यादगार पत्राचार..... 
 एक टिप्पणी छोड़ी थी अविनाश के ब्लॉग पर---

------बहुत दिनों से पढ रही हूँ आपको...समझने की कोशिश करती रहती हूँ...आज डरते-डरते पॉडकास्ट बनाने की हिम्मत जुटा पाई हूँ,(गलतियाँ हो सकती है) कॉपी राईट है आपका ...आपको सुनवाना चाहती हूँ(उच्चारण भी सुधारना है)...पर कैसे ? कोई उपाय?..

अविनाश----
आदरणीय अर्चना जी,
सुनता रहा हूँ आपके पॉडकास्ट।
यह मेरी उपलब्धि, मेरा सौभाग्य है जो आपने मेरी किसी रचना को आवाज देने योग्य समझा है।
बहुत छोटा हूँ मैं, समझ में, आयु में, गुणों में, सभी में।
मुझे 'तुम' ही रहने दें, आशीष का वरदहस्त रखें, वही उचित भी है, मेरे लिए सुखकारी भी।
कमी मुझमे ही रही होगी जो आपको समय-समय पर पढने/समझने में असुविधा हुई हो। आप कभी भी मुझे टोक सकती हैं, डांट सकती हैं। मेरा कर्त्तव्य है अपना लिखा हुआ स्पष्ट करना।
ये मेरा ईमेल आईडी है, आप संपर्क कर सकती हैं।
एक बार फिर से, आभार।

सादर,
अविनाश 
मै---
स्नेहाशीष,
जानती हूँ छोटे हो...मगर सिर्फ़ आयु में...तुम्हें सुख देना मेरा कर्तव्य है।कमी मुझमें ही है क्यों कि मेरी कभी पढ़ने में रूचि नहीं रही। टोकने और डाँटने की जरूरत नहीं पड़ेगी विश्वास है। मैने जो किया है उसमें कई गलतियाँ हुई है...पर मैं हमेशा सीधे ही रिकार्ड करती हूँ बिना पहले लिखे..जो दिल में आता है वही बोलती चली जाती हूँ तुम्हारे बारे में भी जो कहा- दिल से कहा है कुछ भी बनावटी नहीं ....तुम मेरे बेटे की तरह हो (वत्सल २५ साल का है )गलतियाँ ठीक करवाना। एक तो तुम्हारा नाम ही--चन्द्रा या चन्द्र...फ़िर ब्लॉग का नाम-मेरी कलम से..से कहना था मुझे और फ़िर कविता के कई शब्द....कोशिश की है ---मेरा सुनो....और बताओ ...गलतियाँ सुधारकर फ़िर करूंगी ......पर क्या तुम अपनी आवाज में उन्हें पढ़कर भेज सकते हो?
स्नेह...
अविनाश----
आदरणीय अर्चना जी,
इतना गुणी नहीं हूँ जितना आपने मान दिया है। अपनी आवाज में भेज तो सकता हूँ, लेकिन आपकी आवाज में सुनना अधिक मोहक है और प्रिय भी। इतना अच्छा तो मैं लिख-लिख रट-रट के भी संभवतः नहीं पढ़ सकता।
२-३ चीजें जो छूट गयी हैं, वो बता रहा हूँ:
१) नाम अविनाश चन्द्र है।
२) पहली कविता की दूसरी पंक्ति में "उमग" है। "उमंग" नहीं, जैसा कि आपने पढ़ा है। बिंदु नहीं रहेगा।
३) पहली कविता के दूसरे अनुच्छेद में "अजस्र" है, आपने शायद "अजस" पढ़ा है। उच्चारण ठीक वही है जैसा कि आपने अनवरत के शब्दों को पढ़ते समय "अजस्र" का किया है।
४) पहली कविता, पाँचवे छंद में "विजन को" है, लेकिन पढ़ते समय संभवतः "विज़न जो" हो गया है।
५) दूसरी कविता में "प्रांतर" है, "प्रांत" की जगह।

कठिन शब्द रहे होंगे, लेकिन आपने बहुत ही सही उच्चारण किया है, गलतियाँ कोई भी नहीं हैं।
यहाँ तक कि आपने "हर्म्य" का उच्चारण भी पहली बार में ही सही किया है।

फिर भी इस वात्सल्य के लिए धन्यवाद नहीं कहूँगा, आशीष है, रख लूँगा।

प्रणाम।
मैं---

स्नेहाशीष,
मुझे तो सुनते रहे हो हमेशा... मै हमेशा सुनाती भी रहूंगी। एक बार अपनी आवाज में भेज दोगे तो मुझे भी अच्छा लगेगा।--   इतना अच्छा तो मैं लिख-लिख रट-रट के भी संभवतः नहीं पढ़ सकता। ----इस बात से सहमत नहीं हूँ।
जो गलतियाँ बताई हैं उन्हें सुधार लिया है पर एडिट करके ही क्योंकि जिस भाव से पढा उसकी नकल नहीं हो सकती ...Edit करना भी पहली बार ही सीखा है , वत्सल से...इसलिये अब सुनो फ़िर से ---और इसे पोस्ट करने की अनुमति भी चाहूँगी मेरे ब्लॉग पर ..
मना नहीं करोगे।
स्नेह....

अविनाश----

आपकी आज्ञा है सो अपनी आवाज में भेज रहा हूँ, लेकिन मुझे आपकी आवाज में सुनना ही अधिक प्रिय है।
आपने पहली बार एडिट किया है? और इतना अच्छा?
पोस्ट करने के लिए अनुमति की तो आवश्यकता नहीं ही है। आपको बस आज्ञा करनी है। मुझे हर्ष ही होगा।
मना करने जैसा कोई प्रश्न ही नहीं।

प्रणाम
अविनाश

और अब सही उच्चारण के साथ फ़िर से----


शुक्रिया अविनाश को उसकी आवाज में ---मुझे सुनाने के लिए--( भविष्य मे आपको भी ).....


20 comments:

  1. अति उत्तम भाई अविनाश जी !!!
    सादगी और व्यक्तित्व की मिशाल देता हूँ. अर्चना जी को सुन कर पुनः अच्छा लगा.

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  2. कभी हमें भी पढ़ लेना... :)

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  3. bahut dadiya

    होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  4. हम पर भी स्नेह बरसता रहता है अर्चनाजी का।

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ..

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  6. :)
    क्या कहूँ?
    आभार संभवतः ठीक शब्द नहीं। फिर से वही कहूँगा, मैं इतना योग्य नहीं।
    इस स्नेह को प्रणाम।

    सभी पाठकों का बहुत आभार।
    @समीर जी,
    आपको कौन नहीं पढता? :))

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  7. अविनाश को मैने भी पिछले कुछ दिनों में ही पढना शुरू किया है और बहुत प्रभावित हुआ हूँ।

    आप दोनों को और सभी पाठकों को होली की शुभकामनायें!

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  8. बहुत बढिया।

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  9. बहुत सुन्दर...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

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  10. होली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

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  11. मेरा आभार स्वीकार कीजिये।

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  12. होली की बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  13. अर्चना जी,

    मैंने सुना ये पॉडकास्ट...आरम्भ में ही आपकी आवाज़ से प्रभावित हो गयी...फिर जितना कुछ आपने कहा है ..कहीं से भी कोई बनावट नहीं नज़र आई...ये चीज़ सच में बेहद खुशनुमा थी...बहुत अच्छी लगी पहली कविता आपके द्वारा सुनना...ये मेरा पहला ही अनुभव था...

    और हांजी..आपके ब्लॉग पर आई तो यहाँ कुछ पोस्ट भी पढ़ डालीं....एक जगह आपके किसी परिचित ने लिखा था...कि '' आप चाहतीं तो फिल्मों के कई गीत यहाँ गा सकतीं थीं...मगर आपने चुने अनजाने नए लोगों की मौलिक रचनाएँ.....'' एकदम सहमत हूँ इस बात से अर्चना जी...मैं खुद इसी बात को कहने आप तक आना चाहती थी.....आप वाक़ई बहुत बहुत अच्छा काम कर रहीं हैं....नेट की दुनिया में आप जैसे लोग भी हैं...देख कर थोड़ी सी हैरत होती ही है.....वरना यहाँ ज़्यादातर सब स्वार्थ के मारे ही मिलते हैं.......

    खैर,
    मेरी ओर से बहुत ढेर सारी शुभकामनाएं आपके लिए....:):)

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  14. अर्चना जी और अविनाश जी का परस्पर संवाद.... बहुत सुखकर लगा.

    साहित्यिक चर्चाओं का जब से अभाव हुआ है... ऐसे संवाद उनकी भरपायी करते हैं.

    अर्चना जी के प्रयासों को साधुवाद.

    मैंने अर्चना जी के स्वर में अविनाश जी की कविताओं का पाठ भी सुना... बहुत आनंद आया.


    स्वभाव के अनुसार कुछ प्रश्न :

    — 'अजस' को खारिज कर 'अज्रस' लिखा गया... मेरी समझ से 'अजस्र' होना चाहिए.

    जटिल शब्द कितने भी जटिल क्यों न हों... उनका विच्छेद करके या कुछ विशेष प्रयासों से उच्चारण करना संभव है.

    यहाँ 'अज्रस' किसी भी कोण से (मुझे उच्चारण पर भी) नहीं सुहा रहा.

    यदि कहीं इस तरह का शब्द है तो मेरे शब्दकोश में इसका अभाव है.... मैं इसका अर्थ जानना चाहूँगा.

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  15. प्रतुल जी एवं अर्चना जी,

    मेरी ही गलती है, प्रतुल जी ने ठीक कहा है 'अजस्र' सही शब्द है।
    आमतौर पर, और मेल करते समय तो सदैव ही मैं google transliteration का उपयोग करता हूँ। जिसमे कई बार त्रुटियाँ बहुत हो जाया करतीं हैं।
    मैंने अपने ब्लॉग पर सही ही लिखा था शायद या बीच में उन्ही दिनों सही किया होगा , पर मेल करते समय मैंने गलत लिख दिया।
    धन्यवाद प्रतुल जी, इतने दिन बाद भी त्रुटी की तरफ ध्यान दिलाने हेतु।

    आभारी,
    अविनाश

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  16. धन्यवाद प्रतुल जी...त्रुटि की ओर ध्यान दिलाने के लिए...
    आपकी बात सही है -- जटिल शब्द कितने भी जटिल क्यों न हों... उनका विच्छेद करके या कुछ विशेष प्रयासों से उच्चारण करना संभव है.

    मैं समय मिलते ही इस उच्चारण को भी ठीक करने की कोशिश करूँगी...

    आभार अविनाश..

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