रंगबिरंगे पर्व पर होली की शुभकामनाओं के साथ कई गीत जगह बना लेते है।
लेकिन मेरे मन को छुआ राकेश खंडेलवाल जी के इस गीत नें----
सुनाई दे नहीं पाता किसी ने फाग हो गाया
न शिव बूटी किसी ने आज ठंडाई में घोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है.
शुक्रिया राकेश जी का ...
---और राकेश जी का आभार इन दो पंक्तियों के लिए भी ---
यादों की किताब को छूती जब चैती की धूप
तब तब सावन का मिलता भावों को रंग अनूप
लेकिन मेरे मन को छुआ राकेश खंडेलवाल जी के इस गीत नें----
न बजती बाँसुरी कोई न खनके पांव की पायल
न खेतों में लहरता जै किसी का टेसुआ आँचल्
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न खेतों में लहरता जै किसी का टेसुआ आँचल्
न कलियां हैं उमंगों की, औ खाली आज झोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
हरे नीले गुलाबी कत्थई सब रंग हैं फीके
न मटकी है दही वाली न माखन के कहीं छींके
लपेटे खिन्नियों का आवरण, मिलती निबोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न मटकी है दही वाली न माखन के कहीं छींके
लपेटे खिन्नियों का आवरण, मिलती निबोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
अलावों पर नहीं भुनते चने के तोतई बूटे
सुनहरे रंग बाली के कहीं खलिहान में छूटे
न ही दरवेश ने कोई कहानी आज बोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
सुनहरे रंग बाली के कहीं खलिहान में छूटे
न ही दरवेश ने कोई कहानी आज बोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न गेरू से रंगी पौली, न आटे से पुरा आँगन
पता भी चल नहीं पाया कि कब था आ गया फागुन
न देवर की चुहल है , न ही भाभी की ठिठोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
पता भी चल नहीं पाया कि कब था आ गया फागुन
न देवर की चुहल है , न ही भाभी की ठिठोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कीकर है, न उन पर सूत बांधें उंगलियां कोई
न नौराते के पूजन को किसी ने बालियां बोईं
न अक्षत देहरी बिखरे, न चौखट पर ही रोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न नौराते के पूजन को किसी ने बालियां बोईं
न अक्षत देहरी बिखरे, न चौखट पर ही रोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को, आज होली है
न ढोलक न मजीरे हैं न तालें हैं मॄदंगों की
न ही दालान से उठती कही भी थाप चंगों की
न रसिये गा रही दिखती कहीं पर कोई टोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
न कालिंदी की लहरें हैं न कुंजों की सघन छायान ही दालान से उठती कही भी थाप चंगों की
न रसिये गा रही दिखती कहीं पर कोई टोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है
सुनाई दे नहीं पाता किसी ने फाग हो गाया
न शिव बूटी किसी ने आज ठंडाई में घोली है
मगर फिर भी दिलासा है ये दिल को आज होली है.
शुक्रिया राकेश जी का ...
---और राकेश जी का आभार इन दो पंक्तियों के लिए भी ---
यादों की किताब को छूती जब चैती की धूप
तब तब सावन का मिलता भावों को रंग अनूप
उम्दा किन्तु थोड़ा स्लो गायन....
ReplyDeletesundar geet,
ReplyDeleteholi ki shubh-kaamnaayen
सुन्दर गीत को आपने बहुत मधुर सुर में गाया है!
ReplyDeleteबिलकुल।
ReplyDeleteहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
धर्म की क्रान्तिकारी व्या ख्याa।
समाज के विकास के लिए स्त्रियों में जागरूकता जरूरी।
बहुत ही मधुर।
ReplyDeleteअलावों पर नहीं भुनते चने के तोतई बूटे
ReplyDeleteसुनहरे रंग बाली के कहीं खलिहान में छूटे
न ही दरवेश ने कोई कहानी आज बोली है ....
बहुत ही सुन्दर और प्रभावशाली शब्दावली के
बहुत सटीक सदुपयोग करते हुए
एक सुमधुर गीत की रचना करने पर
आदरणीय श्री राकेश जी को नमन कहता हूँ
और
आपने जिस खूबसूरती और सधे हुए स्वरों में
इस गीत को गाया है ....
मानो गीत रचना सार्थक हो गया हो .. वाह
अभिवादन स्वीकारें .
सुंदर ओर मधुर गीत धन्यवाद
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत
ReplyDeletesundar...rachana aur swar dono..
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