Monday, May 23, 2011

मुझे नहीं लगता ..

किसी के लिखे को बुरा कहने का दुस्साहस नहीं क़र पाती मै ,
क्योकि खुद मुझे नहीं पता कि कितना बुरा लिखती हूँ मै,
समझ नहीं आता मेरे लिखे को अच्छा कैसे कहता होगा कोई ,
क्या मुझसे भी बुरा लिखता होगा कही कोई ....

8 comments:

  1. इसे ही तो कहते है अच्छा लिखना!!

    दूसरों की एब निकालने से पहले अन्तर्मन में झांक लेना। और सकारात्मक वचन ही कहना।

    ReplyDelete
  2. बहुत सुन्दर अन्दाज़

    ReplyDelete
  3. यही अहसास तो सुन्दर लेखन की प्रेरणा है..

    ReplyDelete
  4. नित विकास लाने की जिद हो बस।

    ReplyDelete
  5. दौड़ना मृग का कानन-कानन भर, हेतु कस्तूरी।
    देख अकारण पैर केक का रखना नृत्य से दूरी।
    कोई नई, विशिष्ट, अलौकिक, या काल्पनिक प्रथा है?
    विस्तार विवेचन सुधिजन जानें, मुझे नहीं लगता है।

    :)

    ReplyDelete
  6. वाह!
    "बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिल्या कोय,
    जब घट देखा आपना, मुझसे बुरान कोय!"

    ReplyDelete
  7. सबकी अपनी क्षमता होती है ..कोई भी बुरानाही लिखता ..सुन्दर भाव

    ReplyDelete