किसी के लिखे को बुरा कहने का दुस्साहस नहीं क़र पाती मै ,
क्योकि खुद मुझे नहीं पता कि कितना बुरा लिखती हूँ मै,
समझ नहीं आता मेरे लिखे को अच्छा कैसे कहता होगा कोई ,
क्या मुझसे भी बुरा लिखता होगा कही कोई ....
क्योकि खुद मुझे नहीं पता कि कितना बुरा लिखती हूँ मै,
समझ नहीं आता मेरे लिखे को अच्छा कैसे कहता होगा कोई ,
क्या मुझसे भी बुरा लिखता होगा कही कोई ....
yah khoobi shabdon ki muhtaj nahi
ReplyDeleteइसे ही तो कहते है अच्छा लिखना!!
ReplyDeleteदूसरों की एब निकालने से पहले अन्तर्मन में झांक लेना। और सकारात्मक वचन ही कहना।
बहुत सुन्दर अन्दाज़
ReplyDeleteयही अहसास तो सुन्दर लेखन की प्रेरणा है..
ReplyDeleteनित विकास लाने की जिद हो बस।
ReplyDeleteदौड़ना मृग का कानन-कानन भर, हेतु कस्तूरी।
ReplyDeleteदेख अकारण पैर केक का रखना नृत्य से दूरी।
कोई नई, विशिष्ट, अलौकिक, या काल्पनिक प्रथा है?
विस्तार विवेचन सुधिजन जानें, मुझे नहीं लगता है।
:)
वाह!
ReplyDelete"बुरा जो देखन मैं चला बुरा न मिल्या कोय,
जब घट देखा आपना, मुझसे बुरान कोय!"
सबकी अपनी क्षमता होती है ..कोई भी बुरानाही लिखता ..सुन्दर भाव
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