न गज़ल के बारे में कुछ पता है मुझे, न ही किसी कविता के, और न किसी कहानी या लेख को मै जानती, बस जब भी और जो भी दिल मे आता है, लिख देती हूँ "मेरे मन की"
सार्थक सटीक है यह सच्चाई
खूब कहा।
bahut badiya
:)
बहुत खूब ....:-)
@एहसानों को उठाने कब जाता है आदमी...जब ज़रूरत का बोझ अहसान से ज़्यादा लगता है तब व्यापारी इंसान ऐहसान उठा लेता है, अक्सर यूँ होता है कि ज़रूरत पूरी होते ही अहसान बोझ लगने लगता है}
वाह!
गहरा।
ये ब्ब्बात!!!!
सार्थक सटीक है यह सच्चाई
ReplyDeleteखूब कहा।
ReplyDeletebahut badiya
ReplyDelete:)
ReplyDeleteबहुत खूब ....
ReplyDelete:-)
@एहसानों को उठाने कब जाता है आदमी...
ReplyDeleteजब ज़रूरत का बोझ अहसान से ज़्यादा लगता है तब व्यापारी इंसान ऐहसान उठा लेता है, अक्सर यूँ होता है कि ज़रूरत पूरी होते ही अहसान बोझ लगने लगता है}
वाह!
ReplyDeleteगहरा।
ReplyDeleteये ब्ब्बात!!!!
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