Saturday, October 15, 2011

इश्क़ --- मौन की भाषा

आज एक ऐसी रचना जो गहरे तक असर कर गई पहली ही बार पढ़ने में ..शायद आप भी ऐसा ही महसूस करें

पंजाबी नहीं जानती तो उच्चारण गलत हो सकते हैं बल्कि हैं भी......... पर भाव भाषा के ऊपर सवार हों जाएं तो क्या किया जा सकता है ......और फ़िर कह्ते हैं न कि मौन की भी अपनी भाषा होती है ....



इसे ...यहाँ ...........और इस जैसी  कई रचनाएं पढ़ सकते हैं आप यहाँ --

17 comments:

  1. यह इश्क -इश्क और इश्क ...आपकी आवाज को पाकर इश्क भी धन्य हो गया ...!

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  2. वाह ...बहुत बढि़या ।

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  3. अभी पढ़ने जाते हैं।

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  4. सुन्‍दर अभिव्‍यक्ति.

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  5. इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी की गई है!
    यदि किसी रचनाधर्मी की पोस्ट या उसके लिंक की चर्चा कहीं पर की जा रही होती है, तो उस पत्रिका के व्यवस्थापक का यह कर्तव्य होता है कि वो उसको इस बारे में सूचित कर दे। आपको यह सूचना केवल इसी उद्देश्य से दी जा रही है! अधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।

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  6. कविता के भाव तुम्हारी आवाज़ में ऐसे पिरोये हुए हैं मानो कवि ने लिखते समय यदि इसे गुनगुनाया भी होता तो वो तुम्हारी ही आवाज़ होती.. एक अनजानी भाषा में गया यह गीत, तुम्हारी लगन को प्रमाणित करता है!! मेरी छोटी बहन न होती तो तुम्हें प्रणाम करता... कला को प्रणाम!!

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  7. abhi abhi yahi kavita aapki aawaj mein suni...sach kahu to raungte khade ho gaye...shiv ko shiv ki aawaj mein sunne k baad ye doosri kisi ki gayi huyi kavita hai jo bheetar tak choo gayi...aise laga jaise koi aatma ko kaat raha...koi gehra rasta banane k liye...

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  8. बहुत सुंदर क्या बात है .

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  9. उच्चारण वैगरह पर तो मेरा ध्यान भी नहीं गया...इतनी अच्छी तरह से इसे आपने अपने आवाज़ में गया है...उनका ब्लॉग भी देखा, अच्छा लगा..इसी बहाने एक और ब्लॉग भी मिला पढ़ने को :)

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  10. This comment has been removed by a blog administrator.

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  11. सुन्दर....

    सादर

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