ये कविता यूँ ही नहीं बनी ..... समीर लाल जी कि पोस्ट "जिंदा कविता" को पढ़ कर किसी अपने की कही बहुत सी बातें याद आ गई .....बहुत कुछ याद आ गया ... लगा कोई मुझसे कह चुका है पहले ये सब....और अब मेरी बारी है कहने की ..तो "जिंदा कविता" पढ़कर अहसास हुआ अपने जिंदा होने का और लिखी गई ये कविता ----
अपने जिंदा होने का अहसास कराती एक "जिंदा कविता"...
जिसकी खुशबू से महक उठता है एक मुरझाया गुलाब !
जिंदा कविता
जिसमें ईबारत नहीं होती... बस धड़कते हैं जज़बात,रंगीन खुशनुमा एहसास अपने जिंदा होने का अहसास कराती एक "जिंदा कविता"...
जिसकी खुशबू से महक उठता है एक मुरझाया गुलाब !
जिंदा कविता
देख लिया होगा कहीं छुपकर तुमने मुझे पढ़ते हुए ...
..................
तुम्हारे यहाँ न होने पर भी आती आहट तुम्हारे होने की,
सुन पाती हूँ वो धड़कन.....................
तुम्हारे यहाँ न होने पर भी आती आहट तुम्हारे होने की,
जानती हूँ अभी छुप गये होंगे कहीं...
और जो पलट कर न देखूंगी तो
बन्द कर दोगे आँखें मेरी पीछे से आकर
जब छुओगे नम पलकें मेरी तो खींच लोगे मुझे अपनी ओर..
और फ़िर शुरू होगा मौन
(अनकहा) वार्तालाप
और जो पलट कर न देखूंगी तो
बन्द कर दोगे आँखें मेरी पीछे से आकर
जब छुओगे नम पलकें मेरी तो खींच लोगे मुझे अपनी ओर..
और फ़िर शुरू होगा मौन
कभी न खतम होने के लिए...
सिर्फ़ अहसास होंगे तुम्हारे और मेरे बीच
बिखेरते अपनी भीनी-भीनी खुशबू...सिर्फ़ अहसास होंगे तुम्हारे और मेरे बीच
जिनसे महक उठता है एक मुरझाया गुलाब ..
और छा जायेगी फ़िर एक चुप्पी
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न कोई शिकवा न शिकायत...
और फ़िर वही दूरी.....
कुछ मेरी मजबूरी
और कुछ तुम्हारी मजबूरी ..
आह!! दिल की आवाज..शब्दों में...धन्य हुए कि जिंदा कविता ...यह निकलवा पाई.
ReplyDeleteहृदय धड़कता, हम जीवित हैं,
ReplyDeleteनहीं साक्ष्य कुछ और जरूरी।
वाह ……समीर जी की इस कविता ने ना जाने कितनो को मोहा है…………मैने भी वहाँ अपने ख्याल उतारे थे।
ReplyDeleteकहने की बारी आई आपकी तो आपने यह अवसर बेहद सुन्दरता से सार्थक किया...
ReplyDeleteजिंदा कविता... जिंदा साँसें और जिंदा एहसास!
sundar..
ReplyDeleteन अधर खुले
ReplyDeleteन संवाद हुआ
जो कहना था
कह गए नयन मेरे
नि:शब्द कर दिया ... आपने बहुत ही अच्छा लिखा है ... बधाई ।
ReplyDeleteSUNDAR KAVITA....
ReplyDeleteवाह! बहुत सुन्दर भावपूर्ण.
ReplyDeleteकभी कभी मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा,अर्चना जी.