Saturday, December 10, 2011

अनलिखी ईबारत

ये कविता यूँ ही नहीं बनी ..... समीर लाल जी कि पोस्ट "जिंदा कविता" को पढ़ कर किसी अपने की कही बहुत सी बातें याद आ गई .....बहुत कुछ  याद आ गया ... लगा कोई मुझसे कह चुका है पहले ये सब....और अब मेरी बारी है कहने की ..तो "जिंदा कविता" पढ़कर अहसास हुआ अपने जिंदा होने का और  लिखी गई ये कविता ----


अपने जिंदा होने का अहसास कराती एक "जिंदा कविता"...
जिसकी खुशबू से महक उठता है एक मुरझाया गुलाब !
जिंदा कविता
जिसमें ईबारत नहीं होती... बस धड़कते हैं जज़बात,रंगीन खुशनुमा एहसास
देख लिया होगा कहीं छुपकर तुमने मुझे पढ़ते हुए ...
..................
तुम्हारे यहाँ न होने पर भी आती आहट तुम्हारे होने की,
सुन पाती हूँ वो धड़कन...
जानती हूँ अभी छुप गये होंगे कहीं...
और जो पलट कर न देखूंगी तो
बन्द कर दोगे आँखें मेरी पीछे से आकर
जब छुओगे नम पलकें मेरी तो खींच लोगे मुझे अपनी ओर..
और फ़िर शुरू होगा मौन
(अनकहा) वार्तालाप
कभी न खतम होने के लिए...
सिर्फ़ अहसास होंगे तुम्हारे और मेरे बीच
बिखेरते अपनी भीनी-भीनी खुशबू...
जिनसे महक उठता है एक मुरझाया गुलाब ..
 

और छा जायेगी फ़िर एक चुप्पी
 ..............

न कोई शिकवा न शिकायत...
और फ़िर वही दूरी.....
कुछ मेरी मजबूरी
और कुछ तुम्हारी मजबूरी ..










9 comments:

  1. आह!! दिल की आवाज..शब्दों में...धन्य हुए कि जिंदा कविता ...यह निकलवा पाई.

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  2. हृदय धड़कता, हम जीवित हैं,
    नहीं साक्ष्य कुछ और जरूरी।

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  3. वाह ……समीर जी की इस कविता ने ना जाने कितनो को मोहा है…………मैने भी वहाँ अपने ख्याल उतारे थे।

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  4. कहने की बारी आई आपकी तो आपने यह अवसर बेहद सुन्दरता से सार्थक किया...
    जिंदा कविता... जिंदा साँसें और जिंदा एहसास!

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  5. न अधर खुले
    न संवाद हुआ
    जो कहना था
    कह गए नयन मेरे

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  6. नि:शब्‍द कर दिया ... आपने बहुत ही अच्‍छा लिखा है ... बधाई ।

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  7. वाह! बहुत सुन्दर भावपूर्ण.

    कभी कभी मेरे ब्लॉग पर भी आईयेगा,अर्चना जी.

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