Wednesday, July 11, 2012

सत्यमेव जयते!!!



रे !सूरज आधी सदी बीत गई...
तुम मुझे
झुलसाने की कोशिश करते रहे हो,
मैं अब तक झुलसी नहीं...
और आगे भी
तुम्हारी सारी कोशिशें बेकार जाएंगी..
शायद तुम्हें पता नहीं -
मेरा चंदा रोज रात आकर
मेरे घावों पर मरहम लगा जाता है,
लू तुम्हारे साथ है,तो बयार मेरे साथ..
पतझड़ तुम्हारे साथ है तो,बहार मेरे साथ
तुम लाख कोशिश कर लो
हारना तुम्हें ही होगा क्योंकि-
मैंने हर मौसम में
बिना पंखों के उड़ना सीख लिया है ... 
-अर्चना


उड़ जा हंस अकेला.........

 

उड़ जाएगा एक दिन पंछी रहेगा पिंजरा खाली..........


विडियो यू ट्यूब से साभार ...

16 comments:

  1. बिन पंखों उड़ना सीखा है,
    अपनो से जुड़ना सीखा है।

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  2. सूरज को तो हारना ही है...इन हौसलों से भला कौन जीतेगा....

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  3. सकारात्मकता से भरपूर.

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  4. शायद तुम्हें पता नहीं -
    मेरा चंदा रोज रात आकर
    मेरे घावों पर मरहम लगा जाता है,

    बहुत सुंदर बिंबों से सजी और मन को राहत देती रचना

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  5. कविता बहुत अच्छी है। शीर्षक पहले अटपटा लगा लेकिन बाद में समझा की ठीक है। सत्य की जीत होती है धूप चाहे जितना तंग करले।

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  6. उड़ जा हंस अकेला सुनकर भी आनंद आया।

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  7. सकारात्मक सोच व्यक्त करती बहुत सुन्दर रचना..
    उत्कृष्ट :-)

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  8. har ka jor banaya hai iss bhagwan ne
    sukh to dukh bhi
    raat to din bhi
    :))

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  9. कविता बहुत अच्छी लगी बुआ!!

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  10. ....मैंने जीवन को जीना सीख लिया है ......सुन्दर !

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  11. जिसने भी जीने की कला सिख ली चाहे वह किसी तरीके से हो वह तो उड़ चला पंख लगाकर .
    आज की शाम सुहानी लगी ,रात नींद भी अच्छी आएगी ....

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  12. उत्कृष्ठ रचना

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