रे !सूरज आधी सदी बीत गई...
तुम मुझे
झुलसाने की कोशिश करते रहे हो,
मैं अब तक झुलसी नहीं...
और आगे भी
तुम्हारी सारी कोशिशें बेकार जाएंगी..
शायद तुम्हें पता नहीं -
मेरा चंदा रोज रात आकर
मेरे घावों पर मरहम लगा जाता है,
लू तुम्हारे साथ है,तो बयार मेरे साथ..
पतझड़ तुम्हारे साथ है तो,बहार मेरे साथ
तुम लाख कोशिश कर लो
हारना तुम्हें ही होगा क्योंकि-
मैंने हर मौसम में
बिना पंखों के उड़ना सीख लिया है ...
बिन पंखों उड़ना सीखा है,
ReplyDeleteअपनो से जुड़ना सीखा है।
bahut achchha likha hai aapne
ReplyDeleteजीवट जीवट है
ReplyDeleteसूरज को तो हारना ही है...इन हौसलों से भला कौन जीतेगा....
ReplyDeleteआपने पोस्ट लिखी ,हमने पढी , हमें पसंद आई , हमने उसे सहेज़ कर कुछ और मित्र पाठकों के लिए बुलेटिन के एक पन्ने पर पिरो दिया । आप भी आइए और मिलिए कुछ और पोस्टों से , इस टिप्पणी को क्लिक करके आप वहां पहुंच सकते हैं
ReplyDeleteसकारात्मकता से भरपूर.
ReplyDeletesundar rachna ....
ReplyDeleteशायद तुम्हें पता नहीं -
ReplyDeleteमेरा चंदा रोज रात आकर
मेरे घावों पर मरहम लगा जाता है,
बहुत सुंदर बिंबों से सजी और मन को राहत देती रचना
कविता बहुत अच्छी है। शीर्षक पहले अटपटा लगा लेकिन बाद में समझा की ठीक है। सत्य की जीत होती है धूप चाहे जितना तंग करले।
ReplyDeleteउड़ जा हंस अकेला सुनकर भी आनंद आया।
ReplyDeleteसकारात्मक सोच व्यक्त करती बहुत सुन्दर रचना..
ReplyDeleteउत्कृष्ट :-)
har ka jor banaya hai iss bhagwan ne
ReplyDeletesukh to dukh bhi
raat to din bhi
:))
कविता बहुत अच्छी लगी बुआ!!
ReplyDelete....मैंने जीवन को जीना सीख लिया है ......सुन्दर !
ReplyDeleteजिसने भी जीने की कला सिख ली चाहे वह किसी तरीके से हो वह तो उड़ चला पंख लगाकर .
ReplyDeleteआज की शाम सुहानी लगी ,रात नींद भी अच्छी आएगी ....
उत्कृष्ठ रचना
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