Wednesday, August 1, 2012

रेशम की डोर...



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मैं तुझसे लड़ती भी हूँ,
झगड़ती भी..
मैं तुझसे बड़ी भी हूँ
छोटी भी..
बाँधा है मैंने तुझको
शब्दों के बन्धन से...
महकता है ये रिश्ता
बिना ही चन्दन के
डोर ये ऐसी नहीं कि टूट जाए झट से..
चलो अब मुँह खोलो और मिठाई खाओ फट से..
ढेर सारे आशीष तुमको मेरे प्यारे भैया
अब चाहे "दी" कहो "दीदी" कहो या कहो "दिदिया"...
-अर्चना

















14 comments:

  1. वाह, वत्सल के छोटे की फोटो देख बहुत अच्छा लगा..

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  2. खुबसूरत भावनाओं को जीती तस्वीरें और बीते पल का मधुर संगम . राखी की शुभकामनाएं ....

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  3. बहुत प्यारी पोस्ट .... शुभकामनायें

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  4. बहुत प्यारी तस्वीरे...
    बहुत-बहुत शुभकामनाये :-)

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  5. chahe di kahun, didi kahun ya kahun didiya.....
    rahna har samay sath bas itna hi kahega bhaiya....:))

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  6. बहुत ही प्यारी कविता । रक्षा बन्धन के पावन पर्व की हार्दिक बधाई

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  7. बहुत ही सुन्दर .............रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाये

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  8. बहुत ही प्यारी पोस्ट... रक्षाबंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    श्रावणी पर्व और रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनाएँ!

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  10. भावमय करती प्रस्‍तुति‍ ...
    इस स्‍नेहिल पर्व की आपको अनंत मंगल कामनाएं

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  11. बहुत सुन्दर! शुभकामनायें!

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  12. सुन्दर पोस्ट!
    शुभकामनाएं!

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