प्रस्तुत है मीराबाई की एक रचना- (स्वर-अर्चना)...
स्याम म्हाने चाकर राखो जी,
गिरधारी लाला म्हाने चाकर राखो जी।
चाकर रहस्यूँ बाग लगास्यूँ, नित उठ दरसण पास्यूँ।
बिंदरावन री कुँज गली में, गोविंद लीला गास्यूँ।
चाकरी में दरसण पास्यूँ, सुमरण पास्यूँ खरची।
भाव भगती जागीरी पास्यूँ, तीनूँ बाताँ सरसी।
मोर मुकट पीतांबर सौहे,गल वैजंती माला।
बिंदरावन में धेनु चरावे,मोहन मुरली वाला।
उँचा-उँचा महल बणावं बिच-बिच राखूँ बारी।
साँवरिया रा दरसण पास्यूँ,पहर कुसुंबी साड़ी।
आधी रात प्रभु दरसण दीज्यो, जमनाजी रे तीरां।
मीरा रा प्रभु गिरधर नागर,हिवड़ो घणो अधीराँ।
- मीराबाई
यहाँ भी कृष्णमय वातावरण बना हुआ है और तुम्हारे इस भजन ने बाकी कमी भी पूरी कर दी!!
ReplyDeleteसभी को जन्माष्टमी की शुभकामनायें..
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें ...बहुत सुंदर भजन
ReplyDeleteजन्माष्टमी की शुभकामनायें
ReplyDeleterajasthani me hai na ...:)
ReplyDeleteकृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं ....सुन्द्स्र गायन संग सुन्दर बोल
ReplyDeleteहार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDeleteसुन्दर गीत,,
ReplyDeleteशुभकामनाये
:-)
सुन्दर भजन! जन्माष्टमी की बहुत सी शुभकामनायें..
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति! मेरे नए पोस्ट "छाते का सफरनामा" पर आपका हार्दिक अभिनंदन है। धन्यवाद।
ReplyDeleteवाह
ReplyDeleteक्या बात है
जन्माष्टमी की शुभकामनायें!
ReplyDeleteकृष्ण जी का आशीर्वाद सदा रहे!!
जय श्री कृष्ण !!!
इस भजन का आरोह अवरोह कठिन है। आपने मेहनत से निर्वाह किया है। सुनकर बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeletejai shree krishn
ReplyDeleteसुन्दर भजन !
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