मनाओ जश्न कि...चूर होना है...
जीवन क्या है
पानी का बुलबुला
क्षण भंगुर...
आँखों की नमी
धुंधला देती सब
हँसना होगा...
लड़ना होगा
खुद को ही खुद से
खुद के लिए...
बढ़ना होगा
निड़रता से फ़िर
बेखौफ़ होके...
धीरज रखो
दुख में भी अपने
मुस्कान लिए...
औरों के लिए
भूल कर खुद को
मनाओ जश्न....
मनाओ जश्न
कि थकना है हमे
चूर हों हम...
-अर्चना
थक कर ही नींद आये हमें।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता |
ReplyDeleteबहुत सही ....बेहतरीन ..रचना
ReplyDeleteसभी हाइकु बहुत सुन्दर और सार्थक संदेश देते..
ReplyDeleteप्रेरणादायी और जीवन का अर्थ बतलाती हुई,एक बेहतरीन कविता |
ReplyDeleteसादर |
लड़ना होगा
ReplyDeleteखुद को हो खुद से
खुद के लिए
मनाओ जश्न
कि थकना है हमें
चूर हों हम
गजब का अंतरद्वन्द झलकता है , प्रजातान्त्रिक ढंग से संघर्ष कि नियति लेकर जीवन पथ पर अग्रसर होना
आपका यही कथ्य और कथन ऐसे भी झलकता है कि गीतों के चयन और गायन में तब मन सोचने लगता है कि अर्चना चाव जी अच्छा गाती है कि अच्छा लिखती है या दोनों ही एक जैसा बेहतर कर लेती है .आपको पढ़ना और सुनना बहुत भाता है .
:)
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