कभी जो राह तकते थे
वो अब नश्तर से चुभते हैं
किताबों में रखे हैं
फ़ूल वो अब खंजर से दिखते हैं...
हुई ये आँख भी गीली
और उदासी का समन्दर है
अगर कोई जाम भी
छलके तो आँसूओं से छलकते हैं...
कभी तुम लौट कर
आओ इसी उम्मीद में अब भी
लौटती सांस से
हरदम, बड़ी खुशियों से मिलते हैं...
न जाने कौन सा
किस्सा, किताबों सा छपा दिल में
उसी की हर इबारत
से, वो किस्मत को बदलते हैं...
-अर्चना
अरे वाह!! अब तो गज़ल भी कहनें लग गईं आप...बहुत उम्दा!!
ReplyDeleteबीते पल में गुजरे हर सुख दुःख के क्षण ऐसे ही आते जाते हैं . जीवन के सुखद लम्हे ही क्यों कसक लेकर आते हैं , शायद लौटकर फिर नहीं आ पाते . बहुत ही सुन्दर ग़ज़ल जिसमे जीवन की आश का संचार दिखलाई देता है
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ReplyDeleteबहुत बढिया!
ReplyDeleteबहुत ही प्यारी और कोमल अभिव्यक्ति..
ReplyDeleteसुंदर है जी
ReplyDeletebhut hi pyari abhivyakti
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा गजल |
ReplyDeleteबहुत सुंदर बात कही है इस ग़ज़ल में.
ReplyDeleteशानदार भाव हैं गज़ल के.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव पूर्ण गज़ल....
ReplyDeleteबेहतरीन गज़ल...बहुत सुन्दर
ReplyDeleteवैसे तो पूरी ग़ज़ल काबिले-तारीफ है लेकिन अर्चना जी तीसरा शेर बहुत ही उम्दा लगा ...बधाई
ReplyDeleteबहुत उम्दा गज़ल
ReplyDeleteवाह|||
ReplyDeleteबहुत ही बढ़िया गजल...
:-)
बेहतरीन
ReplyDeleteसादर
अच्छी रचना !
ReplyDeletekya baat hai..nice
ReplyDeletedi:))
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