Wednesday, October 17, 2012

आँखें बोलती हैं...

 देखो! हँसना मत ....
मेरी इस नादानी पर ...
मैं ,हाँ मैं अब बड़ी हो गई हूँ ,कहते हैं--मेरे बच्चे!.....
और बूढ़ी भी हो रही हूँ...कहते हैं मेरे बच्चे!....
पर मैं जानती हूँ...
मैं अभी नादान हूँ....
नासमझ हूँ...
बातों को देर से याद कर पाती हूँ,
और जल्दी भूल जाती हूँ...
आँखें -देखना पहले से जानती थी ...
पैरों को चलना ...और
जीभ को बोलना- माँ-पिता ने सिखाया...
जीभ ने स्वाद लेना अपने आप सीख लिया..
आँखों से पढ़ना,और हाथों से लिखना सीखा दिया गया मुझे...

आँखें बोलती भी है ...अब जाना है मैंने .......

9 comments:

  1. बातों को जल्दी भुलना और देर से याद करना बड़ी अच्छी बात है . और आँखें बोलती हैं बस किसी को पढ़ना आये .

    ReplyDelete
  2. जाना तो न.....
    :-)

    सादर
    अनु

    ReplyDelete
  3. सही में आँखें बोलती भी है...सुंदर रचना |

    ReplyDelete
  4. आँखों की भाषा हर भाषा से जुदा होती है |

    नई पोस्ट:- ठूंठ

    ReplyDelete
  5. प्रभावी पंक्तियाँ, आँखे बहुत बोलती हैं।

    ReplyDelete
  6. आँखों की बोली तो दुनिया की हर भाषा में एक जैसी होती है.. एक विश्व और एक भाषा.. आँखों की भाषा!!

    ReplyDelete
  7. आँखें बोलती भी हैं अब जाना!:)

    ReplyDelete