ये तस्वीर कुछ दिनों पूर्व स्कूल जाते हुए ली थी ,हुआ ये था कि मैं अपने घर से बस स्टॉप तक जाने के लिये निकली थी कि मेरे आगे -आगे ये नज़ारा देखा ...
बेटा बेफ़िक्री से जेब में हाथ डाले स्कूल की बस के स्टॉप तक चल रहा था ,और माँ ने उसका स्कूल बेग उठा रखा था,जबकि लग रहा था कि बेटी का हाथ पकड़ा हुआ है ।
माँ के पैरों की चाल देख कर ही अंदाजा लग रहा था (शायद आपको भी लगे)कि बहुत तनाव है -
-इसे छोड़ना है ...आकर छुटकी को तैयार करना है.....इसके पापा भी उठने वाले होंगे .....चाय बनाना है.... नाश्ता -टिफ़िन....वगैरह वगैरह....कामों का ढेर ...
और मैं छुटकी की चाल देख कर उसके मन के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी --
मम्मा भैया को अकेले जाने दो न! ..... मुझे इत्ती जल्दी क्यों उठा दिया....पापा नहीं छोड़ सकते भैया को.....कल से मैं नहीं आउंगी :-( ...आप रोज -रोज ऐसे ही बोलती हो ....भैया बड़ा नहीं हुआ अभी ?....मैं कब बड़ी होउंगी....मुझे भी बड़े होकर जल्दी उठना पड़ेगा ?.....
और मुझे ये देखकर अपने बच्चों का छुटपन याद आ रहा था...बेटी तब भी जल्दी उठकर साथ चलती थी मेरे और बेटा देर से उठकर हमसे आगे निकल भागता था...
स्वभावगत ही होता है शायद ऐसा......
बेटा बेफ़िक्री से जेब में हाथ डाले स्कूल की बस के स्टॉप तक चल रहा था ,और माँ ने उसका स्कूल बेग उठा रखा था,जबकि लग रहा था कि बेटी का हाथ पकड़ा हुआ है ।
माँ के पैरों की चाल देख कर ही अंदाजा लग रहा था (शायद आपको भी लगे)कि बहुत तनाव है -
-इसे छोड़ना है ...आकर छुटकी को तैयार करना है.....इसके पापा भी उठने वाले होंगे .....चाय बनाना है.... नाश्ता -टिफ़िन....वगैरह वगैरह....कामों का ढेर ...
और मैं छुटकी की चाल देख कर उसके मन के भावों को पढ़ने की कोशिश कर रही थी --
मम्मा भैया को अकेले जाने दो न! ..... मुझे इत्ती जल्दी क्यों उठा दिया....पापा नहीं छोड़ सकते भैया को.....कल से मैं नहीं आउंगी :-( ...आप रोज -रोज ऐसे ही बोलती हो ....भैया बड़ा नहीं हुआ अभी ?....मैं कब बड़ी होउंगी....मुझे भी बड़े होकर जल्दी उठना पड़ेगा ?.....
और मुझे ये देखकर अपने बच्चों का छुटपन याद आ रहा था...बेटी तब भी जल्दी उठकर साथ चलती थी मेरे और बेटा देर से उठकर हमसे आगे निकल भागता था...
स्वभावगत ही होता है शायद ऐसा......
:( ... shayad isiliye aajkal saare kaam khud karne padte hain.
ReplyDeleteहा हा हा ...वत्सल बेटा तब सीख लिया होता तो आसान होता न !!
ReplyDeleteAasan tab bhi tha abhi bhi hai tab apne liye karta tha ab dusron ke liye karne ka mann karta hai to koi hai nahi :)
ReplyDeleteहर घर (ज्यादातर) की तस्वीर :)
ReplyDeleteसादर
@वत्सल जल्दी ही आउंगी ...
ReplyDeleteतुम्हारे स्टेटमेंट (पोस्ट) से परे माँ-बेटे (अर्चना-वत्सल) का संवाद बहुत अच्छा लगा!! शायद मैंने पहली बार ही देखा है!!
ReplyDeleteएक तस्वीर से उसके पीछे छिपे संवादों और मनोभावों को ढूंढ निकालना... कमाल की नज़र है तुम्हारी-एक माँ की नज़र, है ना!!
बिल्कुल सच
ReplyDeleteबढिया रचना
ReplyDeleteयह भी गज़ब स्टाइल है ... ज़िन्दगी को देखने का !
ReplyDeleteस्वभाव तो नहीं कह सकते हैं, बच्चों को हाथ पकड़ कर चलने में शरम आती हो..
ReplyDeleteहम तो पढ़ के ही मस्त हुए . वात्सल्य और भ्रातृत्व दोनों ही दिख गए .
ReplyDeleteरोज ही ऐसे दृश्य देखती हूँ, सुबह सुबह मॉर्निंग वॉक पर।
ReplyDeleteकई पिता भी दिख जाते हैं, बड़ा अच्छा लगता है देख, लम्बे चौड़े पिता कंधे पर गुलाबी- नीले रंग के बैग डाले बिटिया का हाथ पकडे उसकी बातें सुनते उसे स्कूल छोड़ने जा रहे होते हैं।
बच्चे जब इतने छोटे होते हैं तो बहुत भगमभाग रहती ही है
ReplyDeleteआज की तस्वीर...
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteवास्तव में महिला काफी तनाव ग्रसित लगती हैं ...जबकि उनका पुत्र "माँ हैं न "?
ReplyDeleteछोटी बच्ची...मैं भी स्कुल जाउंगी बड़ी होकर ....अच्छी तस्वीर