Tuesday, November 20, 2012

सुनो ! मत छेडो़...

आशीष राय जी के ब्लॉग युग दृष्टि से एक गीत ....




सुनो ! मत छेड़ो सुख तान
मधुर सौख्य के विशद भवन में
छिपा हुआ अवसान

निर्झर के स्वच्छंद गान में,
छिपी हुई वह साध
जिसे व्यक्त करते ही उसको,
लग जाता अपराध
इस से ही वह अविकल प्रतिपल
गाता दुःख के गान ! सुनो मत छेड़ो सुख तान

महा सिन्धु के तुमुल नाद में,
है भीषण उन्माद
जिसकी लहरों के कम्पन में,
है अतीत की याद
तड़प तड़प इससे रह जाते
उसके कोमल प्रान! सुनो मत छेड़ो सुख तान

कोकिल के गानों पर ,
बंधन के है पहरेदार
कूक कूक कर केवल बसंत में ,
रह जाती मन मार
अपने गीत -कोष से
जग को देती दुःख का दान ! सुनो मत छेड़ो सुख तान

हम पर भी बंधन का पहरा
रहता है दिन रात
अभी ना आया है जीवन का
सुखमय स्वर्ण प्रभात
इसीलिए अपने गीतों में
रहता दुःख का भान! सुनो मत छेड़ो सुख तान
-- आशीष राय 

9 comments:

  1. भावपूर्ण अभिव्यक्ति .....

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  2. दोनों ही, बहुत सुन्दर..

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  3. बहुत सुन्दर और मधुर प्रस्तुति!

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  4. सुंदर रचना ! सुंदर स्वर !
    अच्छा प्रयास है आपका निरंतर …


    अब आप संगीत-वाद्यों के साथ रिकॉर्डिंग करके भी गीत पोस्ट करना प्रारंभ करें …

    शुभकामनाओं सहित…

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  5. बहुत सुन्दर भाव लिए कविता का उससे भी सुन्दर गायन के लिए बधाई

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  6. बहुत सुन्दर गीत है।
    यदि इसमें सुख तान के स्थान पर सुख की तान कर दिया जाये तो बहुत अच्छा लगेगा!

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