आज आशीष राय जी के ब्लॉग "युग दृष्टि" से एक कविता -- शाश्वत प्रेम
आशीष जी अपनी कविता के बारें में कहते हैं---
"प्रेम
की परिभाषा के बारे में कुछ कहना मेरे जिह्वा के वश की बात नहीं है ,.
सांसारिक प्रेम से इतर शाश्वत प्रेम की परिकल्पना, जो शायद सृष्टि के संचालक
की प्रकृति के प्रति प्रेम की द्योतक है । ये कविता इसी शाश्वत प्रेम
की तरफ इंगित करने की मेरी कोशिश मात्र है"---
मेरी साधारण सी कविता अर्चना जी के कंठ से गुजरकर संवर सी गई है.
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ReplyDeleteसुंदर गीत..सुंदर गान..वाह!
ReplyDeleteखूबसूरत! वाह!
ReplyDeleteसुंदर |
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट:-ख्वाब क्या अपनाओगे ?
सरिताओं के जीवन पर जब
ReplyDeleteकरता तपन कठोर प्रहार
व्योम मार्ग से जलधि भेजता
उन तक निज उर की रसधार!!
वाह !
कविता का भाव उसे निश्चित ही प्रभावशाली बनता है किन्तु कविता का मूल उद्देश्य ह्रदय को आल्हादित करना होता है. बस आपने कानों में मिश्री घोल दी ..
ReplyDeleteसुन्दर कविता, सुन्दर स्वर..
ReplyDeleteअति सुंदर, बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
कर्णप्रिय...सुंदर रचना...शुभकामनाएँ !!
ReplyDeleteनव वर्ष पर बधाइयाँ !!
ReplyDeleteबहुत खूब! वाह!
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर
ReplyDeletesundar kavita ,sumadhur kavya path ...
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