दिल्ली गैंग रेप केस-
इस घटना ने बहुत अन्दर तक डर बैठा दिया है- हम जैसों के मन में ,जो लम्बे समय से अपने जीवन में संघर्ष ही करते आए हैं।
एक हादसा या दुर्घटना पूरे परिवार को तोड़ देती है ,ये वही जान सकता है ,जिसने उस दर्द या पीड़ा को जिया है....
न्यायमूर्ति वर्मा जी की समिती से हमारा निवेदन है कि इस और ऐसे अपराध के अपराधी/अपराधियों को तुरन्त सजा देने के निर्णय लिए जाएं जबकि सब कुछ साफ़ है/हो ...
मैंने बलात्कार की इस घटना को लेकर अपने आसपास के लोगों से अपने मन में उठे विचार लिखने को कहा था,आज वही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ---
1)
अस्मिता बचाने की लाचारी ने
अस्तित्व को संकट में डाल दिया,
दरिंदगी का शिकार बनने की आशंका ने
बेटियों को कोख में ही मार दिया
समझे थे समाधान जिसको
वह समस्या का मूल है!
दुष्कर्मी को संरक्षण
ये मानवता की भूल है !
विश्व की आधी आबादी
खून के आँसू रो रही है,
मानव जाति के कलंक को
नारी त्याग बलिदान से धो रही है।
दुर्गा रूप बहुत हो चुका
अब चंडिका बनना होगा
बनकर काली खड्गधारी
वहशी का खून पीना होगा।
पुत्र को दे संस्कार नारी सम्मान का
बेटियों को हिम्मत ,हौंसला,ताकत देना होगा!
धैर्य,संयम,समर्पण की सीख के साथ
खड्ग तीर तलवार भी देना होगा।
कायर पुरूषत्व को धूल चटाना होगा
बहन-बेटियों ने ही आईना दिखाना होगा
पुलस,कानून,प्रशासन पर न रहें निर्भर
अपने बाजुओं को सशक्त बनाना होगा!...
Atrocities on women is an expression of the social disorder
Delhi Gangrape: Victim dies in Singapore hospital.
Victim showing signs of severe organ failure: Singapore docs.
The News splashed all over the newspapers say but one thing- The Girl Dies. As if in a sigh of relief, we say, yes the girl has been relieved of her pain, anguish and agony. She has attained peace in the end. But the perpetrators of the crime live; they live in shame, in remorse and in an aggrieved state of guilt- a crime for which they can never be pardoned. Not by the deceased, not by law, not by people and never by their own self. Death to these criminals is an easy way out. They cannot and should not be hanged. Hanging would be too small a punishment for too big a crime. Violating other person, violating his body, his mind, his soul; could we exact the culprits by giving them a release through death? No, these people should be made to realize the gravity of the crime that they have committed and then they should be made to relive in their mind what they had done and the consequences of their actions. This in turn would burn within their hearts and souls forever and would get branded into their souls so deep that they would never even think of doing such an action again, not today, not tomorrow, not ever in any of their lives.
-अलका तोमर (शिक्षिका)
3)
"मम्मी पापा के नाम एक संदेश"
आज़ाद परिंदों को परवाज़ से रोको
नादान पंछियों को खुले संसार से रोको
उड़ने न दो जब तक ये उड़ना ही न जाने
इस उम्र की शिद्दत में सरे आम से रोको
मत फ़िक्र करो इनकी कि रह जाएंगे पीछे
अंजाम अच्छा चाहो तो बुरे आगाज़ से रोको
इस वक्त की गर्दिश में इनका हाथ पकड़ लो
जब तक न हो छाया खुली धूप से रोको
जलने से बचाओ इन्हें आगोश में ले लो
दुनिया की चकाचौंध व उन्माद से रोको
कुम्हार बन के इस नरम मिट्टी को संभालो
आकार दो बस इनको तपती आग से रोको
विशेष:-
औरत वो अमानत है जो कुदरत ने अता की
अल्लाह की अमानत है ये
गोविंद की अमानत
यीशु की अमानत है ये
नानक की अमानत
इस दौर के दरिया में इसे बह जाने से रोको
नारी की हिफ़ाज़त ही हम सबका धरम है
हैवान दरिंदों को दुराचार से रोको....
- आतिया अज़हर(शिक्षिका)
समय की कमी के कारण अपनी ओर से ज्यादा कुछ तो लिख नहीं पा रही हूं ,बस श्रेष्ठ जनों से निवेदन है कि त्वरित कार्यवाही की जाए जिससे न्यायपालिका के प्रति भरोसा बना रहे सबका...
और अब रश्मिप्रभा जी की अभिव्यक्ति---
उनके ब्लॉग -"मेरी भावनाएँ" से
इस घटना ने बहुत अन्दर तक डर बैठा दिया है- हम जैसों के मन में ,जो लम्बे समय से अपने जीवन में संघर्ष ही करते आए हैं।
एक हादसा या दुर्घटना पूरे परिवार को तोड़ देती है ,ये वही जान सकता है ,जिसने उस दर्द या पीड़ा को जिया है....
न्यायमूर्ति वर्मा जी की समिती से हमारा निवेदन है कि इस और ऐसे अपराध के अपराधी/अपराधियों को तुरन्त सजा देने के निर्णय लिए जाएं जबकि सब कुछ साफ़ है/हो ...
मैंने बलात्कार की इस घटना को लेकर अपने आसपास के लोगों से अपने मन में उठे विचार लिखने को कहा था,आज वही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ---
1)
अस्मिता बचाने की लाचारी ने
अस्तित्व को संकट में डाल दिया,
दरिंदगी का शिकार बनने की आशंका ने
बेटियों को कोख में ही मार दिया
समझे थे समाधान जिसको
वह समस्या का मूल है!
दुष्कर्मी को संरक्षण
ये मानवता की भूल है !
विश्व की आधी आबादी
खून के आँसू रो रही है,
मानव जाति के कलंक को
नारी त्याग बलिदान से धो रही है।
दुर्गा रूप बहुत हो चुका
अब चंडिका बनना होगा
बनकर काली खड्गधारी
वहशी का खून पीना होगा।
पुत्र को दे संस्कार नारी सम्मान का
बेटियों को हिम्मत ,हौंसला,ताकत देना होगा!
धैर्य,संयम,समर्पण की सीख के साथ
खड्ग तीर तलवार भी देना होगा।
कायर पुरूषत्व को धूल चटाना होगा
बहन-बेटियों ने ही आईना दिखाना होगा
पुलस,कानून,प्रशासन पर न रहें निर्भर
अपने बाजुओं को सशक्त बनाना होगा!...
Atrocities on women is an expression of the social disorder
Delhi Gangrape: Victim dies in Singapore hospital.
Victim showing signs of severe organ failure: Singapore docs.
The News splashed all over the newspapers say but one thing- The Girl Dies. As if in a sigh of relief, we say, yes the girl has been relieved of her pain, anguish and agony. She has attained peace in the end. But the perpetrators of the crime live; they live in shame, in remorse and in an aggrieved state of guilt- a crime for which they can never be pardoned. Not by the deceased, not by law, not by people and never by their own self. Death to these criminals is an easy way out. They cannot and should not be hanged. Hanging would be too small a punishment for too big a crime. Violating other person, violating his body, his mind, his soul; could we exact the culprits by giving them a release through death? No, these people should be made to realize the gravity of the crime that they have committed and then they should be made to relive in their mind what they had done and the consequences of their actions. This in turn would burn within their hearts and souls forever and would get branded into their souls so deep that they would never even think of doing such an action again, not today, not tomorrow, not ever in any of their lives.
-अलका तोमर (शिक्षिका)
3)
"मम्मी पापा के नाम एक संदेश"
आज़ाद परिंदों को परवाज़ से रोको
नादान पंछियों को खुले संसार से रोको
उड़ने न दो जब तक ये उड़ना ही न जाने
इस उम्र की शिद्दत में सरे आम से रोको
मत फ़िक्र करो इनकी कि रह जाएंगे पीछे
अंजाम अच्छा चाहो तो बुरे आगाज़ से रोको
इस वक्त की गर्दिश में इनका हाथ पकड़ लो
जब तक न हो छाया खुली धूप से रोको
जलने से बचाओ इन्हें आगोश में ले लो
दुनिया की चकाचौंध व उन्माद से रोको
कुम्हार बन के इस नरम मिट्टी को संभालो
आकार दो बस इनको तपती आग से रोको
विशेष:-
औरत वो अमानत है जो कुदरत ने अता की
अल्लाह की अमानत है ये
गोविंद की अमानत
यीशु की अमानत है ये
नानक की अमानत
इस दौर के दरिया में इसे बह जाने से रोको
नारी की हिफ़ाज़त ही हम सबका धरम है
हैवान दरिंदों को दुराचार से रोको....
- आतिया अज़हर(शिक्षिका)
समय की कमी के कारण अपनी ओर से ज्यादा कुछ तो लिख नहीं पा रही हूं ,बस श्रेष्ठ जनों से निवेदन है कि त्वरित कार्यवाही की जाए जिससे न्यायपालिका के प्रति भरोसा बना रहे सबका...
और अब रश्मिप्रभा जी की अभिव्यक्ति---
उनके ब्लॉग -"मेरी भावनाएँ" से
और अन्त में
ब्लॉगर साथी श्री गिरिजेश राव द्वारा इस विषय पर तैयार जनहित याचिका का मैं भी समर्थन करती हूँ।
शक्ति बिना उत्सव सब फीके,
ReplyDeleteरस की चाह प्रबल, घट रीते।
एक भाव को आधार मिला है, शीघ्र ही विस्तृत लिखते हैं।