कई साल बीत गए,कभी सोचा नहीं था कि ये कविता मेरे हिस्से आएगी...पर जो भी मधुर एहसास होते हैं, वे स्मृतियों में जिंदा रहते हैं हमेशा... और ये तो मीठी बोली भी है ...जब पहली बार आसनसोल गई तो कामवाली बाई बंगालीभाषी थी ,हिंदी बिलकुल भी बोल नहीं पाती थी और मैं बंगाली मुश्किल से समझती थी और बोलना तो और भी मुश्किल ..जब हम एक-दूसरे को अपनी बात समझाते थे तो उसका कहा एक वाक्य आज भी याद आता है --- थेके थेके या थाके थाके शिके जाबो....जैसा कुछ कहा करती थी वो मुझसे ........
मृदुला प्रधान जी के ब्लॉग से एक कविता पढ़कर रिकार्ड करने की कोशिश की है ,मैं बंगला जानती तो नहीं पर करीब २० साल पहले कुछ समय के लिए बंगला मकान मालिक के घर में रहने का सौभाग्य मिला था,तो कुछ स्मृति के आधार पर ही किया है,शायद ठीक हुआ हो...
मृदुला प्रधान जी के ब्लॉग से एक कविता पढ़कर रिकार्ड करने की कोशिश की है ,मैं बंगला जानती तो नहीं पर करीब २० साल पहले कुछ समय के लिए बंगला मकान मालिक के घर में रहने का सौभाग्य मिला था,तो कुछ स्मृति के आधार पर ही किया है,शायद ठीक हुआ हो...
सच कहूँ तो यह कोई भी सुनने वाला कह देगा कि आप बंगाली भाषी नहीं है ... पर उस के बवजूद आपने जिस शिद्दत से इस कविता को पढ़ा है उसने भाषा की सीमा के आगे जा कर अपनी छाप छोड़ी है ... बधाइयाँ !
ReplyDeleteबहुत ही मीठी लगी यह कविता और कविता पाठ.. बांग्ला भाषा है ही ऐसी!! एकदम रोशोगोल्ला!!
ReplyDeleteअवर्णनीय पाठन बहुत ही मनमोहक
ReplyDeleteवाह ... क्या बात है !!
ReplyDeleteबहुत मीठी कविता..
ReplyDelete२ साल से बंगाल में (दुर्गापुर) रहने के कारण बँगला कुछ कुछ समझ सकता हूँ |
ReplyDeleteबहुत प्यारी कविता और आपका अच्छा प्रयास |
सादर
मैं आभारी हूँ आपकी और खुश भी कि आपको ये कविता इतनी पसंद आई.……।
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