सूंघ तुम पाते नहीं
वरना दूर से
खुशबू पहचान लेते
न जाने तुम्हारी आँखों से
झिल्ली भी कब उतरेगी
जो पढ़ते हो गलत समझते हो
तुम्हारे कान अब पकने लगे हैं
सड़न लग चुकी है उसमें
मधुर संगीत भी तुम्हें
अब कर्कश लगता है -
चिड़िया को गाने से रोकना
यानि तुम्हारे कान का
इलाज भी बाकी है .....
खुद गा पाना
तुम्हारे बस का नहीं
चिल्ला-चिल्ला कर
गला खराब कर चुके हो
बस एक छू सकते हो
मुझे जबरन
लेकिन वो भी
ज्यादा दिन तक नहीं
छू पाओगे ...
मेरे नये पंख अब
उगने लगे हैं
मजबूत वाले .....
घने लम्बे और सफ़ेद....
नए पंख , घने-लंबे और सफ़ेद , उड़ान ऐसी जो आसमान छू ले |
ReplyDeleteशुभदिन
चिड़ीया को गाने से रोकना
ReplyDeleteयानि तुम्हारे कान का
इलाज भी बाकि है...
Mast...ekdam sateek..:)
सुन्दर कविता!
ReplyDelete"करना फ़कीरी" सुनना अच्छा लगा!
बहुत सुन्दर दी....
ReplyDeleteपढना और सुनना दोनों सुखकर....
सादर
अनु
सुंदर प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteबधाई..
sarthak rachna ....
ReplyDeletehttp://ehsaasmere.blogspot.in/2013/02/blog-post.html
बस एक छू सकते हो
ReplyDeleteमुझे जबरन
लेकिन वो भी
ज्यादा दिन तक नहीं
छू पाओगे ...
मेरे नये पंख अब
उगने लगे हैं
मजबूत वाले .....
घने लम्बे और सफ़ेद.
हर बार की तरह सुनना बहुत अच्छा लगा