रात की चौखट पर,
शाम के रस्ते ही,
सन्नाटे को चीर,
उदासी पहुँच जाया करती है
जाने क्यों,
रात के घर में
उजेला नहीं हुआ करता,
स्वागत में बत्तियाँ बुझ जाया करती है...
जैसे कल शाम
चल कर आ गई थी उदासी
रात की चौखट पर
और नींद बतियाती रही थी
उसके आने पर
बत्तियाँ बुझा कर...
नम तकिये पर...
आज नींद बिना बताए ही
उदासी संग
निकल पड़ी है घूमने
यादों की गलियों में...
यादों की गलियाँ
इतनी घुमावदार
कि जैसे जंतर-मंतर
एक सिरे से घुसो
तो गुम होकर रह जाओ
वहीं चली जाती है
नींद , उदासी संग
और बिछड़ जाती है मुझसे...
मैं करती हूँ इन्तजार
भोर के होने तक
आती नहीं नींद अकेले
उदासी को छोड़
तुम्हारे जाने के बाद से ही
दोस्ती हुई है- दोनों की
तुम भी बुला लो मुझे
अपने पास या
छुपा लो अपनी बाहों में
गम -ए- जहां से छुड़ा लो...
बहुत उदास हूँ मैं....
जो घनीभूत पीड़ा थी मस्तक में स्मृति सी छाई, दुर्दिन में आंसू बनकर वो आज बरसने आई .
ReplyDeleteस्मृति डूबा मन जब सारी सुधबुध हारे,
ReplyDeleteचाँद खड़ा चुपचाप गगन से उसे निहारे।
भावपूर्ण और सार्थक अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteबहुत भावप्रणव और सुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआभार।
आज नींद बिना बताए ही
ReplyDeleteउदासी संग
निकल पड़ी है घूमने
यादों की गलियों में...
बहुत भावपूर्ण ....बहुत सुन्दर रचना अर्चना जी ...
सुन्दर प्रेम सिक्त भावो से रचित कविता. पढ़कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteभावुक मन की भावपूर्ण सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest postऋण उतार!
भावपूर्ण ....सुन्दर रचना...
ReplyDelete