अहसासों को कलम में उतारना आसां तो नहीं है
मगर कलम को बोलते सुनना अच्छा लगता है ...
आज कलम बोल रही है आशीष राय जी की --
रात:, संध्या, सूर्य, चन्द्रमा, भूधर, सिन्धू, नदी, नाला
जल, थल, नभ क्या है? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला
विश्व नियंता कभी न देखा, पर इतना कह सकता हूँ
जिसने विश्व रचा है उसने , प्रथम बनाई बधशाला...
आप सुनिये यहाँ ---
मगर कलम को बोलते सुनना अच्छा लगता है ...
आज कलम बोल रही है आशीष राय जी की --
रात:, संध्या, सूर्य, चन्द्रमा, भूधर, सिन्धू, नदी, नाला
जल, थल, नभ क्या है? न जानता वर्षा, आंधी, हिम ज्वाला
विश्व नियंता कभी न देखा, पर इतना कह सकता हूँ
जिसने विश्व रचा है उसने , प्रथम बनाई बधशाला...
आप सुनिये यहाँ ---
आपकी यह प्रविष्टि कल के चर्चा मंच पर है
ReplyDeleteधन्यवाद
धन्यवाद , मेरी साधारण सी कविता आपके काठ से गुजरकर अद्भुत लगी .
ReplyDeleteकाठ ----कंठ
ReplyDeleteJaisi sundar Rachna vaise hi sundar swar
ReplyDeleteकविता पहले पढ़ चुका था, सुनकर अनुष्ठान पूर्ण हुआ।
ReplyDeleteकमाल करती हैं आप भी .... बहुत सुंदर
ReplyDeleteभावपूर्ण कृति ....भावपूर्ण स्वर .....!!
ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रचना.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर,ओजस्वी स्वर! इस पॉडकास्ट को सुनने के बाद कलकी चर्चा में ये अपडेट करना पड़ा-
ReplyDeleteअपडेट:आशीष जी की वधशाला को ब्लॉगजगत की आधिकारिक पॉडकास्टर अर्चना चावजी ने अपना ओजस्वी स्वर प्रदान किया है। सुनिये।बकौल आशीष राय -उनकी साधारण कविता अर्चनाजी के कंठ से गुजरकर अद्भुत हो गयी।
क्या बात... बहुत सुन्दर.
ReplyDeleteछा गयी बधशाला....अब प्रकाशित करवा डालो आशीष :)
ReplyDelete