एक पोस्ट समीर लाल जी की उनके ब्लॉग "उड़नतश्तरी" से . .. कई दिन ....बल्कि साल कहूँ तो भी ठीक होगा से पढ़ रही हूँ ,महीना पंद्रह दिन में याद आती रही है,कई बार कोशिश की रिकार्ड करने की पर मेरी आवाज में कभी अच्छी नहीं लगी मुझे , पोस्ट ही ऐसी है कि पुरूष स्वर में ही अच्छी लगेगी हमेशा ऐसा ही लगा और फिर बनी ये पोस्ट --
और ये रूप भी बिंदिया का --
दासी फिल्म से एक गीत - गायक -मन्नाडे
बिन्दिया जागाए हो रामा निंदिया न आए ....
और ये रूप भी बिंदिया का --
दासी फिल्म से एक गीत - गायक -मन्नाडे
बिन्दिया जागाए हो रामा निंदिया न आए ....
बहुत आभार आपका...और ज्यादा आपके भईया जिन्होंने आपकी बात रख कर मेरी लेखनी का वज़न बढ़ा दिया...
ReplyDeleteसच में बिंदिया का तो जवाब ही नहीं है.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर गीत.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर मधुर प्रस्तुति!
ReplyDeleteआईपैड में सुन नहीं पा रहे हैं, घर जाकर सुनते हैं।
ReplyDeleteबहनों की जिद को टालना मेरे लिए बड़ा मुश्किल होता है. ऐसे में समीर जी की पोस्ट के लिए तुम्हारा कहना तो टाल भी नहीं सकता था. ज़रा और फुर्सत से किया होता तो और भी बेहतर कर सकता था.
ReplyDeleteAti madhur
ReplyDeleteवाह क्या गीत है बधाई
ReplyDeleteवाह !!! बिंदिया के बहाने पुराने जमाने की कितनी सारी खासियतों को गिना दिया...सलिल जी के मधुर वाचन ने इसे कल्पना से उठा कर आँखों के सम्मुख खड़ा कर दिया ...
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