Wednesday, March 20, 2013

चिड़िया ...


सुबह से खोज रही हूँ तुमको
एक बार भी न दिखी मुझको

मुझको है तुम संग फ़ुदकना
चीं-चीं करते तुमसा ठुमकना

दाना अब तक रखा हुआ है
पानी - कटोरा भरा हुआ है

बोलो कि अब कल आओगी
मिले बिना न कल जाओगी ....

-अर्चना

4 comments:

  1. चिडियों का आँगन में चहकना कितना अच्छा लगता,

    Recent Post: सर्वोत्तम कृषक पुरस्कार,

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  2. बचपन की चंचलता गौरया के फुदकने से प्रेरित होती थी।

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  3. बहुत ही सुन्दर पंक्तियां,चिडियों में भेद भाव नही होता सबके आँगन में चहकती हैं.

    "स्वस्थ जीवन पर-त्वचा की देखभाल"

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  4. प्रकृति कहूँ या जीव के प्रति आपका अद्भुत प्रेम नमन करता हूँ इस भाव को

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