(चित्र गूगल से साभार)
संस्मरण पढ़ते समय हर किसी को अपने पुराने दिन याद आने लगते हैं, .....और जैसा कॄष्ण कुमार मिश्रा जी ने लिखा है - बचपन की याद दिलाता है सबको , अपने खेत.... अपने बाबूजी ...अपना गाँव ....बचपन के साथी ...स्कूल...,
तो अच्छा लगता है पढ़ते हुए , ....इस पोस्ट में खास बात ये है कि उस व्यक्ति को इन्होंने याद किया.. ...जिसने सालों पहले छांह देने वाला पेड़ लगाया....और इनके मन में उस पेड़ की याद अब तक है ...हो सकता है कि लोगों को भी लगे कि---
सबके भले के लिए निस्वार्थ काम किया तो कितना संतुष्टि देता है मन को .....
और तो और कुछ करने की भावना भी जगती है इससे लोगों के मन में
आपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeletelazabab sansmaran aur bemisaal aawaz......sone men suhaga.
ReplyDeleteलाजबाब सुंदर स्मरण ,,
ReplyDeleterecent post : मैनें अपने कल को देखा,
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
सादर...!
शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
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ReplyDeleteबूढ़े किसान के परोपकारी कार्य से सिक्षा लेनी चाहिए
latest post: प्रेम- पहेली
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
अच्छा काम जीवन के साथ और चले जाने के बाद में भी रहता है ....
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत सुंदर संस्मरण
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