Monday, June 10, 2013

बरगदिया


                                                         (चित्र गूगल से साभार)
संस्मरण पढ़ते समय हर किसी को अपने पुराने दिन याद आने लगते हैं, .....और जैसा कॄष्ण कुमार मिश्रा जी ने लिखा है - बचपन की याद दिलाता है सबको , अपने खेत.... अपने बाबूजी ...अपना गाँव ....बचपन के साथी ...स्कूल...,
तो अच्छा लगता है पढ़ते हुए , ....इस पोस्ट में खास बात ये है कि उस व्यक्ति को इन्होंने  याद किया.. ...जिसने सालों पहले छांह देने वाला पेड़ लगाया....और  इनके मन में उस पेड़ की याद अब तक है ...हो सकता है कि लोगों को भी लगे कि---
सबके भले के लिए निस्वार्थ काम किया तो कितना संतुष्टि देता है मन को .....
और तो और  कुछ करने की भावना भी जगती है इससे लोगों के मन में
तो मुझे तो पोस्ट अच्छी लगी... शायद आपको भी अच्छी लगे ..आप सुनें ----
पुलिया वाली बरगदिया

8 comments:

  1. आपकी यह रचना कल मंगलवार (11-06-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.

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  2. lazabab sansmaran aur bemisaal aawaz......sone men suhaga.

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2013) के "चलता जब मैं थक जाता हुँ" (चर्चा मंच-अंकः1272) पर भी होगी!
    सादर...!
    शायद बहन राजेश कुमारी जी व्यस्त होंगी इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!

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  5. बूढ़े किसान के परोपकारी कार्य से सिक्षा लेनी चाहिए
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  6. अच्छा काम जीवन के साथ और चले जाने के बाद में भी रहता है ....
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  7. बहुत सुंदर संस्‍मरण

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