Wednesday, September 25, 2013

साथी रे ......


सितारे भी सो गये चांद के संग में
अंतर की चाँदनी टिमटिमाए अंग में

चलो छुप जाएं हम मूँद के पलकें
देख लें सपनों को जो होंगे कल के

खोलेंगे जब पलकों को भोर में हलके
उनींदी आँखों से तुम्हें विदा देंगे चलके

फिर उदासी का वही अन्धड़ आयेगा
चूर होगा गोरा बदन धूल में सन के

दिन के उजाले में दर्द को सह के
सोचेंगे-पलकों से कहीं बूँदें न छलके

याद कर लेंगें तुम्हें हर हिस्से में पल के
देख लेंगे छवि बन्द आँखों में जो झलके....


-अर्चना

7 comments:

  1. प्रतीकों को देख कर मन बह चले तो यही कह उठेगा।

    ReplyDelete
  2. हमें लग रहा है इस रचना को देख के पक्का
    आप हैं होने वाले मशहूर कवि कल के।

    ReplyDelete
  3. आपकी यह प्रस्तुति 26-09-2013 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  4. चलो छुप जाएं हम मूँद के पलकें
    देख लें सपनों को जो होंगे कल के

    खोलेंगे जब पलकों को भोर में हलके
    उनींदी आँखों से तुम्हें विदा देंगे चलके
    बहुत सुन्दर---
    नई पोस्ट साधू या शैतान
    latest post कानून और दंड

    ReplyDelete
  5. दिन के उजाले में दर्द को सह के
    सोचेंगे-पलकों से कहीं बूँदें न छलके

    :)
    kitna pyara sa likha hai

    ReplyDelete
  6. याद कर लेंगें तुम्हें हर हिस्से में पल के
    देख लेंगे छवि बन्द आँखों में जो झलके...

    ............बहुत ही बेहतरीन रचना

    ReplyDelete