प्रिय सनी,
बहुत दिनों बाद आज तय किया कि आपको पत्र लिखूँ , मुझे पता है, आपको भी याद होगा कि आज हमारी शादी की उन्तीसवीं सालगिरह है , और ये भी पता है, कि अगर आप होते तो क्या गिफ़्ट देते .....
अपनी मुलाकात की एक लम्बी सी कहानी याद आ रही है, जिसकी शुरूआत उस दिन से होती है, जब मेरे घर एक पोस्टकार्ड आया था नागपूर से ... जिसमें लिखा था कि हमें आपकी लड़की पसन्द है, और हमलोग अगले हफ़्ते आकर बात पक्की करना चाहते हैं । पिताजी पत्र पढ़ते ही ऑफ़िस से उठकर अन्दर आ गए थे और पढ़कर सुनाया था दादी और माँ को ,सबके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ गई थी ,और सब खुश होते भी क्यों नहीं लगभग साल भर बाद ये जबाब आया था और इस बीच कई जगह रिश्ते के लिए लड़के देखने -दिखाने का अनिवार्य काम, माँ -पिताजी कर रहे थे, पर कहीं भी बात जमीं नहीं थी, मुझे भी माँ ने बताया था कि चलो अच्छा हुआ , उन्होंने हाँ कह दी , मुझे समझ ही नहीं आ रहा था किस लड़के के यहाँ से हाँ हुई है ... खूब याद कर रही थी, साल भर पहले की बात कि वो चेहरा सामने आए .... आया भी धुंधला सा ,लेकिन चेहरे से ज्यादा तो उस वक्त का घटनाक्रम याद आया जब पहली बार ट्रेन में इतनी दूर घर से बाहर माँ-पिताजी मुझे लेकर गए थे. वो भी इसलिये कि उनकी लड़की जो कुछ ज्यादा ही पढ़ ली थी और खेल-कूद में ज्यादा रूचि रखती थी...मोटरसाईकल चलाती थी, जिसे उस समय घरेलू लड़की नहीं कहा जा सकता था ....के लिए एक अच्छा सा वर तलाश पाएं।
खैर! याद आया कि किस तरह कहीं से जान-पहचान निकाल कर आपकी बुआ जी के यहाँ रूकना तय हुआ था ,और जब हम वहाँ पहुँचे तो पता चला कि उनकी तबियत ठीक नहीं है .... उनकी समझदार बेटी ने पहली बार दूर से आए अनजान मेहमानों का बहुत खयाल रखा और माँ का भी , उनसे ज्यादा बात नहीं हो पाई ,हम लोग जल्दी ही तैयार हो गए वहाँ से आपके घर जाने को ताकि उन्हें तकलीफ़ न हो , और जब आपके घर पहुँचे तो आपके पिताजी ने बड़े संकोच से बताया था कि आपकी छुट्टीयाँ मंजूर न हो पाने के कारण आप आए ही नहीं थे , एक संतोष की सांस ली थी मैंने, कि चलो देखने-दिखाने की रस्म से छुट्टी मिली .... आपकी मम्मी जी ने हम सबके लिए स्वादिष्ट खाना बनाया,जिसके लिए वे जानी जाती थी .... तो नया घर, नये लोग होने के बावजूद भी बिना हिचकिचाहट के उनकी रसोई में मदद कर दी थी ....(.बल्कि एक गुजराती लड़की ने महाराष्ट्रीयन खाना बनाने का आनन्द लिया था )क्योंकि आप नहीं थे पता चल गया था , बढ़िया खाना खिलाकर हमसे माफ़ी मांगते हुए आपके माताजी-पिताजी ने भारी मन से हमें विदा किया ... मेरे माता-पिता भी निराश ही थे ,मगर मुझे खुशी हो रही थी कि उस रस्म जिसमें लगता था, कि लड़की सब्जी-भाजी हो , से सामना नहीं हुआ था मेरा ....
..हम लोग बस स्टैन्ड पहुँचकर बुआ के गाँव जाने वाली बस में सवार होने ही वाले थे कि आपके पिताजी हाँफ़ते-हाँफ़ते वहाँ पहुँचे थे,पसीने से तरबतर, करीब ८-१० किलोमीटर साईकल दौडा कर आए थे वे, हम तीनों किसी आशंका से घिर गए थे, लेकिन वे खुश होते हुए बोले थे कि लड़का आ गया .... बिना बताए वो चला आया है छुट्टी न मिलने पर ...आप लोग कॄपया वापस चलिए, और मेरा चेहरा देखने लायक था ...... उन्हें देखकर पहली बात याद आई कि ये जेलर थे ...... कहीं हम लौट न जाएं उनके पहुँचने के पहले इसलिये साईकिल बहुत तेज चलाकर आए थे (बाद में आपके इस सरप्राइज़ की वजह से आप पर गुस्सा तो जरूर उतारा होगा कि आपने बताया नहीं था उन्हें कि आ रहे हैं )...................... खैर हम वापस लौटे .......
लेकिन बहुत मजा आया , कोई तैयार-वैयार नही होना पड़ा और जैसे थे दिन भर के वैसे ही हम घर पहुँच गए थे , उस समय जब पहली बार हमने एक-दूसरे को देखा था, तो बस एक मुस्कान आई थी हम दोनों के चेहरे पर उस घटना के इस तरह घटने से ...आप तैयार होकर बैठे थे ,मेरे मन में चल रहा था कि मैं अपना चयन करने आई हूँ ....हम चुपचाप बैठे रहे कोई बात भी नही की और लौटते में सिर्फ़ एक बार हमारी नज़रे मिली थी बस ...बाय कहने को ...
...और उसके बाद ये पत्र.....करीब सालभर बाद हाँ के लिए आया था ............. .....
खैर ! आपके मम्मी-पापा आए और हमारी बात पक्की करके चले गए , आप नहीं आ पाए थे ...
मैं मन में वही साल भर पहले की छबि को खोजती और सोचती कि आपका भी वही हाल होगा .... फ़िर ४-६ माह बाद की ही शादी की तारीख तय हो गई - यही 25/11/84 ....
और फ़िर शुरू हुआ एक और यादगार आदान-प्रदान ...... आपका पहला पत्र आया .... पिताजी ने मेरा नाम देखा तो खुद आवाज लगाकर बुलाया और मेरी ओर पत्र बढ़ा दिया था , उससे पहले मेरे नाम से किसी का कोई पत्र तो आया नहीं था सो पिताजी से ही पूछा क्या है? .... वे हँस दिए थे ...:-) .....पत्र लेकर एक एकान्त कोना देखकर डरते-डरते खोला था , और आँखे खुली कि खुली रह गई जब हिन्दी के बदले अंग्रेजी में लिखावट को देखा .... होश उड़ गए थे ...... बहुत खौफ़ था मुझे अंग्रेजी का .....पढ़कर समझ तो लेती थी पर लिखना नहीं आता था ..... दिन-रात ,कई बार वो पत्र पढ़ती रही थी ... उसका जबाब नहीं दिया था .... जानती थी कि पंद्रह दिन में दूसरा पत्र आने वाला है ,जिसके बारे में आपने पहले पत्र में ही लिख दिया था ।........ वही हुआ दूसरा पत्र आया इस बार पिताजी से पहले पोस्टमेन से ही ले लिया ..... अब भी वही अंग्रेजी में ..... अब अगर जबाब न दूं तो क्या होगा और दूं तो कैसे दूं ? अंग्रेजी में दिया और गलत हुआ तो क्या होगा और हिन्दी में देने से आप मूर्ख तो नहीं समझेंगे /नाराज तो नहीं हो जाएंगे .......विचार उथल-पुथल मचाने लगे थे क्योंकि आपने बहुत से प्रश्न पूछे थे जिनका जबाब आप शादी से पहले जानना चाहते थे । ...... बड़ी मुश्किल से तय किया कि हिन्दी में ही लिखूँगी .... जो हो सो एक ही बार में हो ...... अगर अंग्रेजी में लिखा तो हमेशा अंग्रेजी में लिखना पडेगा .... :-) और आपके हर सवाल का जबाब आपको मिल गया था..... ... ... अलग भाषा ,अलग रीति-रिवाज,अलग खान-पान,अलग रहन-सहन और रूचियाँ भी बिलकुल अलग होते हुए भी सिर्फ़ मर्यादा,संस्कार और अपने बड़ों का सम्मान वाले समान गुणों के कारण हम आपसी समझदारी से अपने बीच होने वाली बहुत सी बहसों को सुलझाते हुए चल पडे़ थे ......और इस तरह शुरू हुआ था हमारा ये सफ़र ..... जीवन सफ़र .....
बच्चों के नाम तुमने ही चुन रखे थे - वत्सल और पल्लवी....
...................
....................
.................
और सब-कुछ ठीक और व्यवस्थित चलते-चलते अचानक हुए हादसे ने सबकुछ तहस-नहस कर दिया .... ...........
खैर ! इस बीच बहुत वक्त बीत गया , हर साल इस दिन की आमद पर ये मुलाकात याद आती और साथ आते आप भी ,हम साथ रहते और आने वाले साल की प्लानिंग करते फ़िर मुझे हौसला मिलता और फ़िर मैं अपनी जिम्मेदारी संभाल लेती कुछ उदासी के साथ ............................................................... लेकिन खुशी है कि सब कुछ हमारे बीच हुए वादे के अनुसार ही हो पाया /मैंने पूरा करने की कोशिश की ............
और आज यहाँ इस ब्लॉग पर ये पत्र भी आपसे किए वादे के कारण ही संभव हो पाया है, जानती हूँ , आप मुझे किस जगह देखना चाहते थे ..... तो इस बार आप जरूर खुश हो रहे होंगे कि मैंने डर को भगा दिया है , अपने से दूर ,बहुत दूर ............................
एक बात और बता दूँ - ये बच्चे हैं न पूरे आपके जैसे ही हैं, जब पता चल जाता है कि मम्मी को इस काम से डर लगता है तो करवा के ही दम लेते हैं ... और ये हिम्मत आज कर पाई कि आपको पत्र लिखूँ... खुला पत्र ...
दोनों बच्चे अब समझदार हो गए हैं, और जिम्मेदारी से सारे काम करने लगे हैं.....बहू नेहा और दामाद निलेश भी बिलकुल वैसे ही हैं, जैसे हमने सोचा था।.........
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.......आज आपकी बहुत याद आ रही है ...आपके आने से पहले पत्र लिख कर रख लिया .... जानती हूँ ...आप जहाँ भी होंगे देखकर खुश हो रहे होंगे और अपने बच्चों पर गर्व भी हो रहा होगा .... बाकि बातें आपके साथ .... .......
लेकिन एक तोहफ़ा जो इस ब्लॉग जगत के भैया (सलिल भैया) ने मुझे दिया था ,पिछली सालगिरह पर जब मैंने उन्हें ये तारीख बताई थी .......
आज आपको याद दिला रही हूँ-----
याद है तुमको!
तुमको कैसे याद रहेगा
याद दिलाना काम है मेरा
बच्चों की और हम दोनों की सालगिरह
और बढकर उससे
सालगिरह शादी की अपनी
याद दिलाना काम है मेरा.
ऑफिस जाने के पहले
हज्जार दफा तो कहती थी मैं
आ जाना तुम शाम को जल्दी
लोग आयेंगे
माना तुमको काम बड़े हैं अफसर हो
पर याद दिलाना काम है मेरा
आज पचीस नवंबर है
कम-से-कम आज तो याद रखो
कुछ फ़र्ज़ तुम्हारा मेरे साथ भी है
मैं सबकुछ छोडके पीछे आज के दिन ही
आई थी आँगन में तुम्हारे
बरसों पहले याद नहीं
पर याद दिलाना काम है मेरा.
जब से मुझको छोड़ गए तुम
मैं रहती हूँ व्यस्त भूलकर सारी बातें
तुमको याद दिलाना
और लोगों का आना
बिजली गुल – कैंडल ही जला दो
भूल गए सब लगता है
पर याद दिलाना काम है मेरा.
कैंडल के जलते ही
एक हवा का झोंका
फूंक मारकर बुझा गया वो जलता कैंडल
कानों में धीरे से मेरे बोल गया वो
भूल गयी २५ नवंबर
हैप्पी एनिवर्सरी मनाओ मेरे संग तुम
याद दिलाना काम है मेरा!
शादी की सालगिरह मुबारक हो !!!
आपकी
आर्ची.....
याद होगा सनी और आर्ची......कैसे नाम रख लिये थे एक-दूसरे के .... हा हा हा !!!
बन्द करती हूँ .... बाकि फ़िर ......
............ Ni:shabd hoon
ReplyDeleteअर्चना जी, बहुत भावुक हो गया इस पत्र को पढ़कर. और क्या कहूँ. मैं भी निःशब्द हूँ.
ReplyDeleteहैप्पी अनिवर्सरी ... दीदी ... :')
ReplyDeleteDear Sunil,
ReplyDeleteIts really bad manner to read someone else's letter and that too of chhoti bahen. But I'm helpless 'coz she has posted an open letter.
At least now, I can share a small secret with you. You know, my sister's a bit PAGAL. But at the same time she is very DARPOK also. The shield of boldness which she always put on her face, is just to show the kids. In fact she has always played your role successfully, but in all her confinements she plays a mother, a wife and never express it to others.. Again smiles are the part of the act, she shares.. Tears are not the play, she keeps up to herself. I know she must be sharing them with you.
What should I say as Bade Bhaiya. She misses you too much. Although you are there in the cold breeze, in the golden dawn, in crimson sunset, in darkest nights, in full moon and above all in your children.
Wish you a happy anniv. Just drop the green leaf from the tree across to make her believe, YOU ARE THERE!
Yours
Salil
NB: Writing im english as compensation for my sis.
yaadon ka karwan yoon hi gujarta hai
ReplyDeleteयह पत्र नहीं आपका सम्पूर्ण जीवन दर्शन है
ReplyDeleteदरअसल स्मृतियाँ मन का साहस बढाती हैं और जीवन जीने की
राह आसान करती है---
शादी की सालगिरह पर स्मृतियों के आँगन में बैठकर जीवन बुनना
कोई आपसे सीखे,आपने जिस भावुकता से प्रेम की स्मृतियों को
संजोया है अद्भुत है
निःशब्द हूँ
मन भर आया
सादर
आग्रह है--
आशाओं की डिभरी ----------
कुछ लोग कमेंट यहां नहीं कर पा रहे थे, कारण तो समझ नहीं आया पर उनके कमेंट यहाँकॉपी-पेस्ट कर रही हूँ---
ReplyDeleteनिवेदिता श्रीवास्तव जी -
दी ,रोज तो आपसे दुलार पाते हैं पर आज तो आपको ढेर सारा प्यार और दुलार ..... जातें है कुछ मीठा बनाने ...
शोभना चौरे जी -
अर्चनाजी
आँसू है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रहे कितु एक बहुत बड़ा संतोष है मन में इस पत्र ने मेरे मन में आपको बहुत ऊँचा स्थान दे दिया है जहाँ अभी तक कोई नहीं था। ईश्वर आपको परिवार को खूब ख़ुशी दे ताकि आप सबको बाँट सके |
मॄदुला प्रधान जी ---
आज के दिन की
मधुरता को
जिंदा रखने के लिए......
पुराने ज़ज्बातों से
थोड़ी सी खुशबू
निकालकर,
घर के कोने-कोने में
बिखरा दीजियेगा.......
शादी की सालगिरह
कुछ यूँ ही
मना लीजियेगा......
आप सभी का आभार !!
बुआ जी अगर और पढ़ूँगा तो रो दूंगा....तो माफी चाहता हूँ बीच मे ही छोड़ रहा हूँ....!!!
ReplyDeleteनि:शब्द कर दिया आपने तो .... शुभकामनाओं के साथ
ReplyDeleteसादर
नम कर गया ये पत्र ...
ReplyDeleteदी मन कर रहा है कस के गले लग जाऊं आपके....
ReplyDeleteआपकी हर बात पर विरोध करती हूँ...झगडती हूँ मगर आज आपके साथ हूँ आपके एकदम पास....
ढेर सा प्यार आपको,आपकी यादों को....
बधाई एक बहुत प्यारी इंसान होने के लिए...एक बेहतरीन माँ होने के लिए..और excellent दी होने के लिए....
शुभकामनाएं ......
अनु
No words to say
ReplyDeletepadte padte lga jese sab aankho ke samne hi chal rha hai
No words to say
ReplyDeletepadte padte lga jese sab aankho ke samne hi chal rha hai
No words to say
ReplyDeletepadte padte lga jese sab aankho ke samne hi chal rha hai
भावुक कर दिया...
ReplyDeleteजीवन चलने का नाम
ReplyDeleteमोटरसाइकिलिस्ट बहना!! सालगिरह मुबारक
HAMSAFAR khone ke baad hausale se jiwan men badhanewali meri bahan ARCHANA HI AISI JIWANTATA dikhala sakati hai bhaanje bhaji sang damad aur bahu ko mera asim sneh aur BAHANOI SAHAB KO MERA YATHESHT PREM
ReplyDeleteye din hamesha SMARANIY ****
ANOKHA ANDAZ LEKIN LAAJAWAB
ढेर सारी शुभकामनायें और सलाम आपके हौसले को...
ReplyDeleteमन को गहरे तक छू गया दी , आपको सादर प्रणाम !
ReplyDeleteआभार आप सबका .....
ReplyDeleteआपका पत्र पढ़ मन नम हो गया, वत्सल में पिता की झलक है। क्या कहूँ, सह रहा हूँ आपके व्यक्त भाव।
ReplyDeleteसाहसी महिला है आप !
ReplyDeleteमुबारक हो जिंदगी आपको !
अन्दर किछ पिघलक्र जैसे बहर आना चाहता है . नमन है आपकी जिन्दादिली को . ये हौसला बस बना रहे .
ReplyDeleteअन्दर किछ पिघलकर जैसे बाहर आना चाहता है . नमन है आपकी जिन्दादिली को . ये हौसला बस बना रहे .
ReplyDeleteअन्दर किछ पिघलकर जैसे बाहर आना चाहता है . नमन है आपकी जिन्दादिली को . ये हौसला बस बना रहे .
ReplyDeleteमैंने इसे आज पढ़ा , बधाई बहुत बहुत बधाई ! कितनी दिलेरी से लिखा होगा ये पत्र - हम तो रो दिए क्या तुमने न बहाया होगा नीर ! तुम्हारी जिंदगी की जंग में एक सफल व्यक्तित्व को मेरा सलाम !
ReplyDeleteMan bhar aaya , God bless you and sweet family !!
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