कल परसों ही मैंने बताया था न कि मन एक गीत पर जाकर फ़ँस गया था तो ऐसे ही एक दिन नज़र जाकर अटक गई थी गौतम राजरिशी जी की गज़ल पर -- अब तो सबको पता
है कि मुझे गाना आता नहीं .. वो तो ईश्वर मेहरबान हो जाता है कि ऐसी
सिचुएशन बनाते रहता है ...जैसे इस गज़ल की एक लाईन --
"ऊँगली छुई थी चाय का कप थामते हुए".....(और चाय तो अपनी कमजोरी है )
तो इसको जब गाने का मन हुआ तो बहुत रात हो चुकी थी , और भतीजा बगल के कमरे में पढ़ाई कर रहा था तो आवाज ज्यादा जोर से नहीं निकाल सकती थी...दबी सी आवाज में ट्राय किया कि इसे अभी ही रिकार्ड करूं , मन गया तो फ़िर गया ही समझो ...सो ये हुआ रिकार्ड-
अब गा लिया तो सुनाना भी जरूरी हो जाता है, सो भेज दिया गौतम जी को ...और उनकी प्रतिक्रिया थी -
"ओ माय गॉड.... ओ माsssssय गॉड !!!!! अर्चना मैम ...कितनी सूदिंग आवाज़ है आपकी ! शुक्रिया मैम ! वैसे अचानक से शुक्रिया शब्द छोटा प्रतीत हो रहा है | फिर भी...शुक्रिया ! शुक्रिया !! शुक्रिया !!!! नेट की स्पीड इतनी मद्दम है यहाँ इन पहाड़ों पर कि बड़ी मुश्किल से तो डाउन्लोड हुआ है ये और तब से लगातार यही बज रहा है मेरे लैपटॉप पर रिपीट मोड में |"
और गौतम जी ने अपने ब्लॉग पर इसे जो सम्मान दिया... मेरी आँखें नम हो गई पता नहीं क्यूँ.....
"ऊँगली छुई थी चाय का कप थामते हुए".....(और चाय तो अपनी कमजोरी है )
तो इसको जब गाने का मन हुआ तो बहुत रात हो चुकी थी , और भतीजा बगल के कमरे में पढ़ाई कर रहा था तो आवाज ज्यादा जोर से नहीं निकाल सकती थी...दबी सी आवाज में ट्राय किया कि इसे अभी ही रिकार्ड करूं , मन गया तो फ़िर गया ही समझो ...सो ये हुआ रिकार्ड-
अब गा लिया तो सुनाना भी जरूरी हो जाता है, सो भेज दिया गौतम जी को ...और उनकी प्रतिक्रिया थी -
"ओ माय गॉड.... ओ माsssssय गॉड !!!!! अर्चना मैम ...कितनी सूदिंग आवाज़ है आपकी ! शुक्रिया मैम ! वैसे अचानक से शुक्रिया शब्द छोटा प्रतीत हो रहा है | फिर भी...शुक्रिया ! शुक्रिया !! शुक्रिया !!!! नेट की स्पीड इतनी मद्दम है यहाँ इन पहाड़ों पर कि बड़ी मुश्किल से तो डाउन्लोड हुआ है ये और तब से लगातार यही बज रहा है मेरे लैपटॉप पर रिपीट मोड में |"
और गौतम जी ने अपने ब्लॉग पर इसे जो सम्मान दिया... मेरी आँखें नम हो गई पता नहीं क्यूँ.....
हमने सुनी.....और इस बार दी आपकी बुराई नहीं करूंगी :-)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लगा आपका यूँ ग़ज़ल पढ़ना.....
सादर
अनु
इस ग़ज़ल को सुनते हुए एक बहुत पुरानी बात याद आ गई.. एक फ़िल्म थी "आविष्कार".. उसमें जगजीत-चित्रा की आवाज़ में एक गीत रिकॉर्ड होना था "बाबुल मोरा..".. गाने की रिहर्सल रात भर चली और जब फाइनली रिकॉर्ड करने का समय हुआ तो सुबह के चार बज रहे थे. जगजीत-चित्रा की आवाज़ें भारी हो गयी थीं और गाना रिकॉर्ड हुआ.. बाद में बासु भट्टाचार्य जी ने बताया कि उन्हें वही इफेक्ट चाहिये था..
ReplyDeleteतुम्हारी गाई इस ग़्ज़ल के सुरों को जाने दो, लेकिन जो आवाज़ में असर पैदा हुआ है वो कमाल है.. गौतम जी की ऐं वें सी ग़ज़ल (उनके शब्दों में) की पर्फेक्ट अदायगी, अर्चना मैम!! :)
शुक्रिया फिर फिर फिर से॥और एक अलग से शुक्रिया पोस्ट के शीर्षक के लिए :)
ReplyDeleteब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन संसद पर हमला, हम और ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत ही खूबसूरत गज़ल और उतनी ही कमाल की आवाज़ ... बेमिसाल ...
ReplyDeleteSARASWATI JI KI KRIPA BANI RAHE AUR HAM HAMESH AISI MADHUR AAWAZ SUNATE RAHEN KHUBSURAT BOL AUR SUNDAR ADAYAGI
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (14-12-13) को "वो एक नाम (चर्चा मंच : अंक-1461)" पर भी है!
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!!
- ई॰ राहुल मिश्रा
वाह . . .
ReplyDeleteजितना अच्छा लिखा है, उतना ही सुन्दर गाया भी।
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