आज निवेदिता ने फ़ेसबुक पर कुछ पंक्तियाँ लिखी -
"अजीब सी है
ये रिश्तों की
गहराती दलदल
आओ डूब कर
कहीं दूर मिल जायें "…… निवेदिता
पढ़कर मेरे मन में जो आया वो उसके कमेंट में लिखा -
"चलना मुश्किल है
इस दलदल में
एक-दूजे क स
आओ मिलकर
इनमें डूब जाएं" .....अर्चना
......निवेदिता से कहा- "मेरी पंक्तियों के बाद तुम्हारी पढ़ने में अच्छा लग रहा है ...आगे बढ़ाओ इसे" ..और कुछ समय बाद ही उनकी ब्लॉग पोस्ट तैयार होने की खबर मिल गई ... सोचती रही मैं उसके बाद भी मन में उथल-पुथल होती रही...और ये लिखा मैंने ---
"रिश्तों का दलदल"
सोंधी सी महक
भर दें
सबके मन में
आओ बदरिया बन
एहसासों की बूँदे
हम बरसाएँ......
प्यास न रहे
बाकी
किसी की
सबके होठों पर
प्रेम की अम-रसिया
हम छलकाएँ......
नमीं न हो
आँखों में
किसी की
आओ हौले से
गोद में ले
सिर सहलाएँ......
एहसासों की बूँदे..
प्रेम की अम-रसिया..
और असीम स्नेह के साथ..
इनकी गहरी अनुभूती ..
कोई शक नहीं कि
हम रिश्तों के
दलदल में फ़ँस जाएँ.....
-अर्चना ....
और ये सब सुनना हो तो यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं---
"अजीब सी है
ये रिश्तों की
गहराती दलदल
आओ डूब कर
कहीं दूर मिल जायें "…… निवेदिता
पढ़कर मेरे मन में जो आया वो उसके कमेंट में लिखा -
"चलना मुश्किल है
इस दलदल में
एक-दूजे क स
आओ मिलकर
इनमें डूब जाएं" .....अर्चना
......निवेदिता से कहा- "मेरी पंक्तियों के बाद तुम्हारी पढ़ने में अच्छा लग रहा है ...आगे बढ़ाओ इसे" ..और कुछ समय बाद ही उनकी ब्लॉग पोस्ट तैयार होने की खबर मिल गई ... सोचती रही मैं उसके बाद भी मन में उथल-पुथल होती रही...और ये लिखा मैंने ---
"रिश्तों का दलदल"
सोंधी सी महक
भर दें
सबके मन में
आओ बदरिया बन
एहसासों की बूँदे
हम बरसाएँ......
प्यास न रहे
बाकी
किसी की
सबके होठों पर
प्रेम की अम-रसिया
हम छलकाएँ......
नमीं न हो
आँखों में
किसी की
आओ हौले से
गोद में ले
सिर सहलाएँ......
एहसासों की बूँदे..
प्रेम की अम-रसिया..
और असीम स्नेह के साथ..
इनकी गहरी अनुभूती ..
कोई शक नहीं कि
हम रिश्तों के
दलदल में फ़ँस जाएँ.....
-अर्चना ....
और ये सब सुनना हो तो यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं---
भइया तो दो बहनों की अभिव्यक्ति के बीच समझदारी से नो कमेंट स्टाइल में मुस्करा के निकल लिये .... हैं न दी :)
ReplyDeleteअरे नहीं भाई!! ये स्माइली दोनों बहनों की जुगलबन्दी पर था!!अर्चना के गाने पर मैं स्माइली ही लगाता हूँ!! :)
ReplyDeleteमैंने गाना तो गाया ही नही :-(
ReplyDeleteमैंने गाना तो गाया ही नही :-(
ReplyDeleteबहुत प्यारी जुगलबन्दी,
ReplyDeleteआओ नयी विधा बनायें
तुम्हारे पॉडकास्ट के लिये हमेशा गाना ही निकलता है मुँह से.. जैसे मम्मी आज भी ग़ज़ल को क़व्वाली कहती हैं!! :)
ReplyDeleteरिश्तों कि जुगल बंदी बेहतरीन
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteहृदय स्पर्शी रचना
ReplyDeleteनमीं न हो
ReplyDeleteआँखों में
किसी की
आओ हौले से
गोद में ले
सिर सहलाएँ......
...बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
हृदय स्पर्शी रचना
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