फिर एक नए दिन का इंतज़ार
कि सुबह सूरज अलसाया सा उठे
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ओढ़कर बादलों की चादर....
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निकले पंछी कलरव करते
कि पशुओं से भी छूट गए खूंटे
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खुश हो थोड़ा घूमें बाहर.........
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ठंडी सी बयार आए
लेकर के संदेसा बूंदों का
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भीनी सी महक मन ले हर ......
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यादों का पुलिंदा सर पर बोझ सा
अश्रु संग बह जाए अकेले में
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तू अपनों को जब चाहे याद कर ....
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन हुनर की कीमत - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteयादों का पुलिंदा सर पर बोझ सा
ReplyDeleteअश्रु संग बह जाए अकेले में
...लाज़वाब अभिव्यक्ति...
ठंडी सी बयार आए
ReplyDeleteलेकर के संदेसा बूंदों का.
आमीन। बहुत सुंदर प्रस्तुति।
बहुत सुंदर ।
ReplyDeleteयादों का पुलिंदा सर पर बोझ सा
ReplyDeleteअश्रु संग बह जाए अकेले में
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तू अपनों को जब चाहे याद कर ....
सुंदर पंक्तियाँ, बेहद सुंदर प्रस्तुति
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (30-06-2014) को "सबसे बड़ी गुत्थी है इंसानी दिमाग " (चर्चा मंच 1660) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'