24 जुलाई
तुम फिर आई
एक बुरी याद लेकर
जिसका कोना कहीं
फंसा हुआ है दिमाग में
और इसी वजह से
फेंकने में सफल नहीं हो पाई
अब तक उसे बाहर
वरना तो
हादसों की तारीखें
कहाँ याद रहती है....
दूसरे दिन इतवार
मिली थी खबर
गिरी थी जिप्सी खाई में
छुट्टी का था दिन
लगा रखी थी मेंहदी
बालों में और
रच गए थे हाथ खुद ब खुद
भागे-भागे उतारी मेंहदी
मगर हाथों पे रंग चढ़ा रहा
अपने प्यार की
रंगत लिए
आवाज आई-
क्या करेंगी आप ?
जाना पड़ेगा आपको,
बच्चों को लेंगी साथ
या छोड़ जाएंगी?
दुविधा में थी -
घर-परिवार से कोसों दूर
बच्चे हादसे को सह न पाएंगे
सजीव देख...
डर गयी थी
सोच -भीतर तब
तय कर लिया छोड़ना
कहाँ?
आस लिए नज़रें
आपही घूमीं चारों ओर
लोग इकट्ठे हो चुके थे
सच्चे दोस्त का चेहरा
पहचान, रूक गयी आप ही
चल पडी अनजानी राह पे
छोड़ 7साला वत्सल
और 5साला पल्लवी को
जिसका पांचवां जन्मदिन
20 को ही मनाया था
पहली बार उनके बिना ....
रोई नहीं मैं
बस आँखे भरती रही
जबरन !
पहली हवाई यात्रा
उफ़!
अजीब सिहरन !!!
कलकत्ता -अब तो
नाम भी बदल गया
इस महानगर का
रूकना था
अतिवृष्टि और
कुछ असमंजस के कारण
मिला दास साहब का घर
बहुत पुरानी हवेली -सा
रात बितानी थी
गौहाटी के रास्ते
साधन न मिलने पर
उनकी माँ -चाची
हाथ फेरती रही सिरहाने बैठ
मेंहंदी लगे बालों में
शुभ होता है मीठा खाना
कह -बढाया रसगुल्ला
अनजान शहर
अनजान लोग
और इतना दुलार
मन रोया फूट -फूट कर.....
शशी दादा पहुँच चुके थे
पहली बार बात हुई मेरी
चचेरे जेठ जी से..
और
सुबह फिर नई यात्रा
हवाई अड्डे पर
हुई मुलाकात
मेरी सखी से
हाँ ,
हाँ ,उसे भी लाया गया था
इसी तरह
मगर अब उसे आगे नहीं जाना था
किस्मत रूठ गयी थी उससे
शरीर लौट रहा था
उसके पिया का .....
एक -दूसरे से नज़रे मिली थी
डर से सामना करना
तय हो गया था उसी वक्त......
फिर आसमानी सफ़र
खिड़की से झांक
लगा था अंदाजा
खूबसूरत ,प्यारी
दयालु धरती माँ का
बंद आखों में टूटते
सपने थे ,और सिर्फ
मेरे अपने थे
बच्चों की निगाहें
और उनकी आशाएं
"पापा को लेने गई मम्मी".......
"गौहाटी" देवी का घर
गेस्ट हाऊस और स्टाफ
अब सिर्फ रूह टकराती है सबकी
एक टैक्सी- वर्मा और चालना साहब
खौफ़ भरा सफ़र
7 किलोमीटर....
इतना लंबा !!!कि
ख़तम हुआ नहीं लगता था
खैर!
न्युरोलोजिकल हॉस्पिटल
एंड रिसर्च सेंटर
मुस्कुराती मिली थी यहीं
"उत्पला बोरड़ोलाई"
जिसकी मुस्कान बस गई है
मेरे चेहरे पर अब ....
जबकि
चढ़ते हुए सीढियाँ
चल रहा था
मंथन ,क्रंदन ,
अंतर -रूदन .....
अंतिम सीढ़ी-
हाथ बाँधे ,पीठ टिकाए
डॉक्टर चक्रवर्ती
लगातार तीन दिनों से
जागते हुए ...
-हेल्लो-ये "मिसेस चावजी"
देख चौंके थे मुझे
जाने क्यों ?
अब लगता है -
शायद मुझे संयमित देख...
आईये-
पहले देख लीजिये
फिर बात करते हैं
इतना ही बोल पाए थे,
आई सी यू वार्ड
गहरा सन्नाटा
और दहशत ...
चार बेड
सब एक से मरीज
कोमा में ....
बस !!!
आंख भर देखा
हाथ को छुआ
लगा -सोए ही हैं ...
कुछ कहना नहीं था ,
न ही सुनना
कहा-सुनी की गुंजाईश ही नहीं ....
बाहर आ
तीन दिनों से रूकी
सांस भरी ....
एक लम्बे ,पथरीले
कंटीले और उबाऊ ,
और एकाकी..
सफ़र पर चलने को......
.....
....
और बस चलते-चलते
घिसटते-दौड़ते
भागते-छिपते
खुशियों को पकड़ते
आ पहुंची हूँ
पड़ाव के करीब...
मुझे पता है-
तुम फिर चली जाओगी
बीत जाओगी
बीते सालों की तरह
पर अब चले ही जाना
अपना कोना लेकर .......
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (25.07.2014) को "भाई-भाई का भाईचारा " (चर्चा अंक-1685)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है, धन्यबाद।
ReplyDeleteये कोना यादों का ... शुरू से अंत तक मन को व्यथित कर गया ...
ReplyDeleteअच्छा लगा संस्मरणात्मक रचना ...
ReplyDeleteवाकई बहुत मुश्किल रहा होगा।
ReplyDeleteये यादों का कोना और इसकी चुभन पहुंच गई हर दिल में।
ReplyDeleteअपनों की यादें कभी पीछा नहीं छोड़ती।
ReplyDeleteशायद प्रभू की यही इच्छा थी।
अपनों की यादें कभी पीछा नहीं छोड़ती।
ReplyDeleteशायद प्रभू की यही इच्छा थी।
बहुत अच्छी तरह से भावनाओं को शब्दों में व्यक्त किया है आपने
ReplyDeleteपढ़ते-पढ़ते आँखों में आंसू आ गए
अपनों की यादें पीछा नहीं छोड़ती...
ReplyDeleteआपकी लेखनी में जादू है ......... सीधे असर करता है
ReplyDelete"............."
ReplyDeleteEk Hiku ...
ReplyDeleteArchana dee se
Jud gaya man
Ek Fevicol sa
....
bahut achi rachana hai
ReplyDeleteyadoan ko vartaman aur bite hue pal se jodati hai
sudhirsinghmgwa@gmail.com
MANZIL GROUP SAHITIK MANCH
रुला दिया आपने...! आपके संघर्ष को महसूस करता हूँ तो बहुत शक्ति मिलती है। अपनी माँ का संघर्ष याद आता है। जब पिताजी हम सब को छोड़ गए थे तब मैं वत्सल से 11 साल बड़ा था। छोटी बहन मुझसे 6 साल छोटी।
ReplyDeleteरुला दिया आपने...! आपके संघर्ष को महसूस करता हूँ तो बहुत शक्ति मिलती है। अपनी माँ का संघर्ष याद आता है। जब पिताजी हम सब को छोड़ गए थे तब मैं वत्सल से 11 साल बड़ा था। छोटी बहन मुझसे 6 साल छोटी।
ReplyDeleteरुला दिया आपने...! आपके संघर्ष को महसूस करता हूँ तो बहुत शक्ति मिलती है। अपनी माँ का संघर्ष याद आता है। जब पिताजी हम सब को छोड़ गए थे तब मैं वत्सल से 11 साल बड़ा था। छोटी बहन मुझसे 6 साल छोटी।
ReplyDeleteआपमें अद्भुत शक्ति है जिसकी बदौलत आप परिवार को संभाल पाईं!!
ReplyDeleteआपमें अद्भुत शक्ति है जिसकी बदौलत आप परिवार को संभाल पाईं!!
ReplyDeleteनिःशब्द हूँ...हिम्मत और हौसले भी भगवान ही देते हैं.
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