"उत्पला बोरडोलाई" ...........एक ऐसा चेहरा जो आज भी याद आता है मुझे .......
बात है 1993 जुलाई की ......
मेरे पति सुनील के एक्सीडेंट की खबर मिलने पर गौहाटी के जिस अस्पताल में मुझे ले जाया गया था उस अस्पताल पर रिसेप्शन काउंटर पर छोटे कद की एक दुबली पतली हल्के सांवली सी हंसमुख लड़की ......हाँ यही पहचान याद है मुझे
मैं माँ और भाई के साथ वेटिंग स्पेस में बैठी रहती ....
और जब अपने दिमाग को शांत करने की कोशिश करती तो बस एक यही चेहरा था जिस पर नज़र रूकती थी और नज़र मिलते ही वो मुस्कुराती इस आशा में कि मैं भी मुस्कुराउंगी.....पर मैं असफल रहती .....पूरे दो महीने गुजारे थे उसे देखते हुए ....
और इतने दिन में कुछ बेहतर हो गयी थी मैं ......मुस्कुराने लगी थी .....
शायद हर दिन ज़िंदा और मुर्दा लोगों को देखते-देखते एक यही बात समझ पाई थी कि मुस्कान वाकई कीमती है हर किसी को नसीब नहीं !!!
.
.
.
घर शिफ्ट किया तो कल ये शो पीस सामने आया और साथ लाया उत्पला की याद .....
.
.
अस्पताल से छुट्टी मिलने पर वापस आते समय "बेस्ट ऑफ़ लक" कहते -कहते उसकी आँखों में आँसू भी देखे थे मैंने .....और उसने एक पेकेट थमा दिया मना करने पर कहा- मेरी याद रहेगी !....
भरी-भरी आँखों से विदा ली थी मैंने उससे और अस्पताल के स्टॉफ से ....
.
.
.
कई दिनों बाद जब वक्त मिला और पेकेट खोला तो ये शो पीस देखा .....मन ही मन थैंक्स कहा और सजा लिया अपने घर में .... मुझे लगता है जैसे मेरे दोनों बच्चे ऐसे ही मेरी ओर ताकते रहते थे और हैं .....
जितने भी घर बदले इसे सजाए/संभाले रखती हूँ ...
उत्पला आज कहाँ है नहीं जानती पर जहाँ कही भी हों वही मुस्कराहट बिखेर रही होंगी मैं उससे यही कहना चाहती हूँ ,जिन बच्चों के बारे में उनसे बताया था कि घर पर छोड़ कर आई हूँ ,आज बड़े हो गए हैं और उन्हें भी मैंने तुम्हारी तरह मुस्कुराना सीखा दिया है ........
मुझे विश्वास है वे भी तुम्हारी तरह मुस्कान बिखेरेंगे हर हाल में ........
बिलकुल सही है
ReplyDeleteकुछ चेहरे मन पर ऐसी छाप छोड़ जाते हैं --वे मिलें न मिलें जिंदगी में दोबारा मग उनकी यादें स्मृति पटल पर सदा ही रहती हैं अक्सर वे कोई अपने घनिष्ट नहीं भी होते हैं
---
शायद यह उस देवदूती के इस उपहार का प्रभाव रहा होगा कि उसकी मुस्कुराहट आज भी तुम्हारे होठों पे मौजूद है, जीवन की कठिनाई भरी राहों से लेकर, आह्लाद के क्षणों में भी. उत्पला को क्यों ढूँढती रही तुम.. वो तो तुम्हारे साथ ही है ना! कितने सारे रिश्तों में जो तुमने बिना मिले बनाए, उन सारे रिश्तों में उत्पला ही तो है!!
ReplyDeleteआज तुम्हारी इस छोटी सी पोस्ट ने दिल को बहुत गहरे तक छुआ है.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 10-07-2014 को चर्चा मंच पर उम्मीदें और असलियत { चर्चा - 1670 } में दिया गया है
ReplyDeleteआभार
सच, मन को छू गई उत्पला की मुस्कान के साथ उनकी स्मृतियां,इनके साये हमसे ज्यादा बड़े होते हैं तभी तो हमारा वजूद रहता है हमेशा इनके ही दायरे में
ReplyDelete....
दिल को छू लेने वाली दास्तान..शुक्रिया!
ReplyDeleteदिल को छूने वाला वाकया .....
ReplyDeleteआपको हौले से छूता एक बहुत ही खूबसूरत एहसास
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDelete