Sunday, July 27, 2014

अजीब उलझन में फंसा मन .....

1-

बंद पड़े संदूक से
निकल रही है
तुम्हारे हाथों कटी
पुराने अखबार की
कतरने!!
और
अपने बच्चों की किताबें...
.......
उठाती हूँ फेंकने के लिए
पलटती हूँ पन्ने
और फिर
धूल झाड़ कर
रख लेती हूँ
वापस संदूक में......

2-

सिलाई मशीन !.....कितनों के पास है ,जो सिर्फ पडी है .....
बहुत शौक से खरीदी थी !!!...

उसे निकाल दूं
जब ये बात आती है
तो आँखों के आगे उड़ने लगते है
नन्हे नन्हे रंगबिरंगे झबले और फ्राक बिटिया के ...
और अब "मायरा" भी तो है!......
नानी के हाथों सजने को ......
.
.
.
हुनर तो है
बस मन नहीं .....

3-

ऐसे ही नहीं जन्म लेती
कविताएँ,और
खूबसूरत नज़्में
उसके लिए प्रेम करो
अपने से
अपने लोगों से
सिर्फ सजीव ही नहीं
घर ,और घर में पड़े
निर्जीव सामान-
टेबल-कुर्सी
पलंग -तकिये
पुरानी किताबों और
रद्दी पड़े पेन्सिल के टुकड़ों से भी...
यहाँ तक कि
उस झाडू से भी
जो बुहार
नहीं सकी हो
अब तक
पुरानी यादों को
और
फिर देखना
तुम भी
जन्मोगे 
कविताएँ
और
खूबसूरत नज़्में......!!!

-अर्चना
( 27-07-2014,10:26)

6 comments:

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  2. फेसबुक पर देखा!! दिल को छूती हुई यादें हैं!!

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  3. याक्सें जो दिल से जाती नही हैं कभी ...

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  4. ये यादें ही तो जीवन है ! मंगलकामनाएं आपको

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  5. अर्चना जी कविताएं बेजोड़ हैं । फेसबुक पर आपकी निरन्तर उपस्थिति,मायरा के लिये इतना ध्यान और ये कविताएं ..कमाल है ।

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  6. दिल को छूती हुई यादें

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