पिछले दिनों फ़िर एक नाटक देखने का मौका मिला धर्मवीर भारती जी को श्रद्धांजली स्वरूप ...
प्रस्तुति थी अनवरत टीम की और नाटक था-
धर्मवीर भारती का- "नदी प्यासी थी"... निर्देशन किया था नितेश उपाध्याय ने ..
इनके निर्देशित किये अब तक तीन नाटक देखे तीनों बढ़िया मगर इससे और बेहतर करने की संभावना है उनमें ...
"नदी प्यासी थी".
जीवन से निराश एक ऐसे व्यक्ति राजेश की कहानी जो लेखक है ....अपना जीवन समाप्त करना चाहता है..लेकिन अन्त में एक अनजान बच्चे का जीवन बचाने की कोशिश में खुद जीने की आस जगा बैठता है......जिन्दगी की खूबसूरती का उसे एहसास होता है और वो लौट आता है अपनी जिन्दगी में
राजेश( शशांक चौरसिया) नामक पात्र के संवाद लम्बे थे मगर अदायगी अच्छी रही...
साथ ही चल रही थी एक पढ़े लिखे डॉक्टर की प्रेम कहानी ..जो अन्त में जीवन से निराश हो जाता है......सिर्फ़ एक गलतफ़हमी की वजह से .. डॉक्टर का अभिनय करने वाले पात्र पियूष भालसे ने वाहवाही बटोरी .... एक दब्बू किस्म के शर्मीले किरदार का अभिनय करके ......और दीक्षा सेंगर ने पद्मा का किरदार बखूबी निभाया आवाज थोड़ी और जोर से आती तो और अच्छा लगता ( ये मेरी अपनी राय है)
दोस्त के रूप में नितेश उपाध्याय ने और उनकी पत्नि के रूप में नयन रघुवन्शी ने आकर्षित किया ...
पार्श्व में चलने वाले गीत कलीम चन्चल ने बखूबी गाए और लिखे भी उन्हीं ने थे खासकर शुरूआती गज़ल बहुत अच्छी लगी ....
बहुत कम समय के अभ्यास के बाद भी एक बेहतर प्रस्तुति , हर कलाकार ने अपना १००% देने की कोशिश की ....
पियूष भालसे और दीक्षा सेंगर
नितेश और नयन
राजेश के किरदार में शशांक चौरसिया
वाकई बांधे रखा संवादों और कलाकारॊं ने ..और अन्त में मेरी आंखों में नमी भी महसूस हुई ... जब कोई अपना असमय जाता है ,परिवार पर पहाड़ टूट पड़ता है .... काश कि जीवन के सौन्दर्य को सबकी नजरें देख पाए ...
बधाई अनवरत टीम को
अपने नाम को साबित करते हुए एक माह में एक नाटक का वादा पूरा किया ...साथ ही इस टीम से जुड़े वे सभी सहयोगी भी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर सहयोग किया और अपनी ऊर्जा दिखाई .....
मुझे खुशी हुई कि मैं इतने अच्छे लोगों से जुड पाई .. और मेरी शुभकामनाएं कि अनवरत का कार्य अनवरत चलता रहे ....
प्रस्तुति थी अनवरत टीम की और नाटक था-
धर्मवीर भारती का- "नदी प्यासी थी"... निर्देशन किया था नितेश उपाध्याय ने ..
इनके निर्देशित किये अब तक तीन नाटक देखे तीनों बढ़िया मगर इससे और बेहतर करने की संभावना है उनमें ...
"नदी प्यासी थी".
जीवन से निराश एक ऐसे व्यक्ति राजेश की कहानी जो लेखक है ....अपना जीवन समाप्त करना चाहता है..लेकिन अन्त में एक अनजान बच्चे का जीवन बचाने की कोशिश में खुद जीने की आस जगा बैठता है......जिन्दगी की खूबसूरती का उसे एहसास होता है और वो लौट आता है अपनी जिन्दगी में
राजेश( शशांक चौरसिया) नामक पात्र के संवाद लम्बे थे मगर अदायगी अच्छी रही...
साथ ही चल रही थी एक पढ़े लिखे डॉक्टर की प्रेम कहानी ..जो अन्त में जीवन से निराश हो जाता है......सिर्फ़ एक गलतफ़हमी की वजह से .. डॉक्टर का अभिनय करने वाले पात्र पियूष भालसे ने वाहवाही बटोरी .... एक दब्बू किस्म के शर्मीले किरदार का अभिनय करके ......और दीक्षा सेंगर ने पद्मा का किरदार बखूबी निभाया आवाज थोड़ी और जोर से आती तो और अच्छा लगता ( ये मेरी अपनी राय है)
दोस्त के रूप में नितेश उपाध्याय ने और उनकी पत्नि के रूप में नयन रघुवन्शी ने आकर्षित किया ...
पार्श्व में चलने वाले गीत कलीम चन्चल ने बखूबी गाए और लिखे भी उन्हीं ने थे खासकर शुरूआती गज़ल बहुत अच्छी लगी ....
बहुत कम समय के अभ्यास के बाद भी एक बेहतर प्रस्तुति , हर कलाकार ने अपना १००% देने की कोशिश की ....
पियूष भालसे और दीक्षा सेंगर
नितेश और नयन
राजेश के किरदार में शशांक चौरसिया
वाकई बांधे रखा संवादों और कलाकारॊं ने ..और अन्त में मेरी आंखों में नमी भी महसूस हुई ... जब कोई अपना असमय जाता है ,परिवार पर पहाड़ टूट पड़ता है .... काश कि जीवन के सौन्दर्य को सबकी नजरें देख पाए ...
बधाई अनवरत टीम को
अपने नाम को साबित करते हुए एक माह में एक नाटक का वादा पूरा किया ...साथ ही इस टीम से जुड़े वे सभी सहयोगी भी बधाई के पात्र हैं जिन्होंने पर्दे के पीछे रहकर सहयोग किया और अपनी ऊर्जा दिखाई .....
मुझे खुशी हुई कि मैं इतने अच्छे लोगों से जुड पाई .. और मेरी शुभकामनाएं कि अनवरत का कार्य अनवरत चलता रहे ....
उत्कृष्ट प्रस्तुति।।।
ReplyDeleteThank you so much Mam, hum(anvaratt abhinaye) aapka aabhar wyaqt karti hai..
ReplyDeleteसुन्दर...
ReplyDeleteवाह .... बेहतरीन प्रस्तुति
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