Monday, September 8, 2014

जब कर ली अपने मन की

शिक्षक दिवस के अवसर पर नईदुनिया और बी सी एम ग्रुप द्वारा कलकत्ता के बैंड -
"ध्वनि .. .म्यूज़िक फ़्रॉम द हार्ट " की प्रस्तुति रखी गई थी इन्दौर के शिक्षकों के लिए ... बहुत आनन्द लिया  नए-पुराने गीतों के साथ ,
......कुछ समय के लिए खुद को खुद से मिलवाने के लिए .... सालों बाद सीटी बजाई .... निलेश ( अपने दामाद जी, मायरा के पापा) ने भी साथ दिया  ......खूब  मजा आया .....
गीतों का चयन बहुत पसंद आया और दर्शकों को बाँधे रखने की उनकी कला भी पसंद आई....

अन्त में जब सबसे फ़ीड्बेक मांगा गया तो रोक न सकी खुद को स्टेज पर जाने से ...... मुझसे पहले जितनी शिक्षिकाएं आई कुछ ने अंग्रेजी में तारीफ़ की ,कुछ गीतों की दो-दो पंक्तियां गुनगुनाकर चली गई ......
निलेश को लगा था मैं भी गीत ही सुनाउंगी , सोच भी लिया था मैंने एक पल को पर अपन तो वही करते हैं--  "मेरे मन की" तो यही बात स्टेज से कही कि - मैं अर्चना चावजी ....... परफ़ोर्मेंस बहुत पसन्द आया और मैंने सालों बाद सीटी बजाई ... और फ़िर तो पब्लिक डिमांड पर स्टेज से भी सीटी बजा ली ....हालांकि उतनी अच्छी बजी नहीं हंसी आने के कारण ...पर ...नेक्स्ट टाईम ....पक्का!!!


 


 और ये भी आश्चर्य की बात रही कि ब्लॉगर कविता वर्मा जी जो कि हॉल छोड़ कर बाहर निकल चुकी थी मेरा नाम सुनकर पलट कर वापस आई और हम खूब गले मिली ..... उन्के श्रीमान जी को नेपथ्य में रखकर हालांकि बात कुछ नहीं की पर फोटो जरूर ली ....



दूसरे दिन यही खबर अखबार में आई लेकिन नाम की गफ़लत के साथ - अचर्ना चौधरी.... हिन्दी के अखबार  में गलत नाम आना- वो भी नईदुनिया में ... अखर गया ...!

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