Saturday, April 18, 2015

पैरों की जूती

यहाँ ऐसे -ऐसे लोग हैं 
जो ये मानते हैं -
उनके पैरों की जूती भी
नहीं हैं आप ...
खुद पर विश्वास रखो
मिलेगा वही
जो चाहते हो
बस! 
स्वार्थ न हो 
निस्वार्थ रहो सदा
करते चलो अपने काम
बेझिझक
बेहिसाब
फिर वे ही लोग 
आपकी जूती में 
पैर डालने की कोशिश 
करते नज़र आएंगे
आगे बढ़ने का रास्ता
उस तक पहुँचने का रास्ता
सिर्फ़ आपको ही पता है 
और विश्वास रखो 
चलते रहोगे तो
नंगे पैर भी
जा पहुँचोगे 
वहीं ...सबसे पहले
जहाँ पहुँचने को
बेताब हैं सब 
जो बिना नाप के जूतों में 
पैर डाले घिस रहे हैं 
अपने शरीर
- अर्चना ( बस यूँ ही आज का दिन गुजरते-गुजरते)

5 comments:

  1. एक दिन वे जूतियां इतनी महत्वपूर्ण होंगी कि लोग सिर पर खा कर भी धन्य होंगे!!
    अच्छा रहा चिन्तन!

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  2. जो किसी को पैरों की जूतियां समझते हैं एक दिन वही उनके सर पर पड़ती है तब वे कुछ नहीं कर पाते ...
    बहुत बढ़िया रचना

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  3. सादर नमन द्रोणाचार्या,
    एकदम सही। आपकी इस सलाह पर अमल जरूर किया जाएगा। चलती रहूँगी आपके दिखाए नक़्शे कदमो पर.……निरंतर....... और आश्वस्त हूँ, पहुँच भी जाऊँगी, आपके मार्गदर्शन के बल पर......जहां पहुँचने की चाह है।
    आपकी एक पोस्ट से आपके बारे में जाना है कि आपको ज्यादा लम्बी रचनाएँ लिखना और पढ़ना कम पसंद है…… पर फिर भी अपनी इस शिष्या के आग्रह पर हो सके तो अवश्य पढियेगा एक लेखनी मेरी भी: "छोटू"
    http://lekhaniblog.blogspot.in/

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  4. बिलकुल सच कहा है...बहुत सुन्दर और सटीक प्रस्तुति..

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  5. सटीक रचना

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