Friday, May 15, 2015

तप रहे सूरज से -एक विनती ..

आज सुबह ६ बजे से ही तप रहे सूरज से एक विनती ..

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तप रही धरती बहुत 
ऐ! सूर्य क्यों इतना ताकते 
बादलों की खिड़कियों से 
थोडा छुप के क्यों न झांकते 
नन्हे पौधे कुम्हला रहे 
तुम्हारी किरणों के ताप में 
ओस की बुँदे बदल जाती 
सुबह ही भाप में 
इस धरा की ओर तुम 
देखो ज़रा सा प्यार से 
पंछियों को बख्श दो 
अपनी नज़रों के वार से 
चाँद से ही मांग लो 
थोड़ी शीतलता तुम उधार 
देखो फिर तुमसे भी 
हर कोई करेगा प्यार .......
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कुछ ही समय बाद -

सूरज ने विनती सुन ली !
 पानी का हल्का छिड़काव करा दिया है,
 बादलों से कहकर 
और धरा ने भी सौंधी खुशबू से महका लिया है
 आँगन अपना ......
आखिर दिल से निकली विनती की 
अनदेखी नहीं की जा सकती .....
और प्रेम के बस में कौन नहीं ?
-अर्चना

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