आज का दिन मेरी मुठ्ठी में है ,किसने देखा कल ..... समय तू धीरे-धीरे चल ....
सुन रही हूँ ये गीत ...... सोच रही हूँ..मुठ्ठी में से भी तो फ़िसल निकल भागता है दिन ....और ये समय किसकी सुनता है ...सुनी है किसी की इसने .... मैं तो कहती हूँ साथ ही ले चल ...पर नहीं ..... वो भी नहीं होता इससे ...... कभी तो आगे भाग लेता है और कभी पीछे रूका रहता है ....
जिसे साथ ले जाना होता है उसे भनक भी लगने नहीं देता ...और जो साथ जाने को तरसता है उसे भाव नहीं देता .....
तो प्लीज ..मेरी ओर से इसे कहो न ---
चल मेरे साथ ही चल ....ऐ मेरे जां , समसफ़र ....
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मुझे लगता है -कहीं कोई और जगह मुझे बुला रही है ....कुछ और नया करना है ....यहाँ भी कुछ सोच कर नहीं
आई थी ..आगे भी बस चलते जाना है .....
किशोर दा नेपथ्य में सुना रहे हैं - गाड़ी बुला रही है,सीटी बजा रही है ...चलना ही जिन्दगी है ,चलती ही जा रही
है .....
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ग्राउण्ड से लगा बायपास ..जहाँ सुबह की सैर किया करते थे और छत पर शाम को छोटे बच्चों के साथ प्रार्थना
किया करती थी ..पता नहीं अब कितनों को याद होगी .....ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ कोई काम न किया हो ....
अब स्कूल छोड़ना है,तो लग रहा है घर छूट रहा है .....
कोई राजी नहीं जाने देने को ...कहते हैं- लम्बी छुट्टी ले लो,मगर वापस आना ...जाना नहीं .....
किया करती थी ..पता नहीं अब कितनों को याद होगी .....ऐसी कोई जगह नहीं जहाँ कोई काम न किया हो ....
अब स्कूल छोड़ना है,तो लग रहा है घर छूट रहा है .....
कोई राजी नहीं जाने देने को ...कहते हैं- लम्बी छुट्टी ले लो,मगर वापस आना ...जाना नहीं .....
मुझे लगता है -कहीं कोई और जगह मुझे बुला रही है ....कुछ और नया करना है ....यहाँ भी कुछ सोच कर नहीं
आई थी ..आगे भी बस चलते जाना है .....
किशोर दा नेपथ्य में सुना रहे हैं - गाड़ी बुला रही है,सीटी बजा रही है ...चलना ही जिन्दगी है ,चलती ही जा रही
है .....
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आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-06-2015) को "समय के इस दौर में रमज़ान मुबारक हो" {चर्चा - 2012} पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteबढ़िया
ReplyDeleteवाह, बहुत खूब
ReplyDeleteयही है जिंदगी .....चलते ही जाना है ....किसी का साथ छूटेगा ..किसी का मिलेगा ....
ReplyDeleteतुम्हारी याद !
निर्णय लिया है तो कुछ सोच-समझकर ही लिया होगा। जीवन के अनेक पड़ाव हैं,और अनेक मोड़ भी। शुभकामनायें!
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