Thursday, August 6, 2015

लाचारी

आँख खुलते ही बारिश की टिप-टिप सुनाई दे रही है कभी तेज कभी धीमी ..पिछले दिनों दो छुट्टी बारिश की वजह से हो गई थी ..मैंने चाय बना ली है बार -बार ध्यान फोन पर जा रहा है कहीं आज भी छूट्टी की खबर न आ जाए .... हमेशा तो खुशी हो जाती है लेकिन आज मन कह रहा है छुट्टी न हो ... कारण ....?
कारण ये कि कल उसने मुझसे हजार रूपए मांगे थे ...पूछने पर कि क्यों चाहिए ...बताया कि हमको पैसे मिलेंगे तब आपको वापस कर देंगे ..मैं पूछा क्यों चाहिए ये ? और क्या इस माह पैसे नहीं मिले ?
सकुचाते हुए बोली मिले थे ,मगर हमने पिछली बार जिससे उधार लिये थे उसको वापस कर दिये ,और भाई की फीस भर दी ...
मेरा अगला सवाल था माँ भी तो काम करती है,और पिताजी क्या करते हैं?
-पिताजी दूसरी स्कूल बस पर कंडक्टरी करते हैं.... माँ और मेरे को दोनों को मिली थी तनखा मगर बचे नहीं .... पिताजी को बहुत छुट्टी करनी पड़ गई थी ...
मेरा अगला सवाल था कितने भाई-बहन हो ?
- हम चार बहनें और सबसे छोटा भाई..
भाई स्कूल जाता है ,और तुम्हारी छोटी बहनें (ये जानती थी कि ये सबसे बड़ी है और आठवीं के बाद पढ़ना छोड़ दिया है)
-वे घर पर ही रहती है ...उनके टी.सी. लेने के लिए ही तो पिताजी को छुट्टी लेनी पड़ी .आगे दाखिला नहीं मिल रहा कहीं और गाँव की स्कूल वाले बोलते हैं अभी नहीं बनी बाद में आना ... पिछला पूरा साल ऐसे ही निकल गया ....
ओह! कह कर मैं चुप हो गई ....
फिर कहा उसने कि मैंडम जी गैस की छोटी टंकी है हमारे पास, वो खतम हो गई है ...अभी किसी से स्टोव मांग कर लेते हैं और उसपर खाना बनाना पड़ता है ...बहुत परेशानी हो रही है... दो दिन से मेरी तबियत भी ठीक नहीं लग रही सिर दुखता है,बुखार जैसा भी लगता है .......कहते-कहते उसकी आँखें नम हो गई .... जिसे वो छिपाने की कोशिश कर रही थी ....
अब मैं चकित थी मैंने अपना पर्स टटोला पाँच सौ का एक नोट था और दो तीन सौ-सौ के.... 500 का उसको देते हुए कहा - अभी यही है .पाँच सौ कल ला दूँगी ...
घर में कमाने वाले तीन खाने वाले सात ....और एक भाई के लिए चार बहनें ....
कब तक ?
..
और आज जाना ही होगा स्कूल .... यही सोच रही हूँ काश आज छुट्टी न हो .....
 नहीं हुई छुट्टी ...सुन ली गई मेरी प्रार्थना ....जैसे ही स्कूल पहुँची पता चला आज नहीं आई वो ...सोचा शायद तबियत खराब हो गई ....
रहा नहीं गया उसकी मां को खोजते हुए उस तक गई...जैसे ही नज़र मिली उसकी पनीली आँखे डबडबा आई .... लेकिन उनमें कॄतज्ञता का भाव साफ नजर आ रहा था .... मैं समझ गई ..कल लिए पाँच सौ रूपयों के लिए मेरा शुक्रिया कर रही है ...मेरे ये पूछने पर कि कहाँ है वो ?...
बोली आज बड़े ऑफ़िस वाली दीदी नहीं आई तो उधर ड्यूटी लगी है ....
अच्छा कहते हुए मैंने पाँच सौ का नोट उसकी ओर बढा़ते  हुए कहा ...ये कल के बाकि थे न वो ....
उसने हाथ बढ़ा कर ले लिए ..जी मैड़म जी कहकर ...

6 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 07 अगस्त 2015 को लिंक की जाएगी............... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

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  3. दिल को छू लेने वाली रचना, बहुत ही अच्छा लिखा है आपने.

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  4. मददगार मिल जाते हैं तो रास्ता आसान हो जाता है

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  5. कहाँ कहाँ से गुजरती है ज़िंदगी :(

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