Monday, August 10, 2015

वो लड़की !

मैं ये मानती हूँ कि -"अगर आपके मन में अच्छा काम करने की भावना है तो ईश्वर उसे करने का मौका देता है" .....
१०/८/१५
आज स्कूल से लौटते वक्त 3:30 बजे बैंक में काम होने से रास्ते में बस से उतर गई......काम निपटाने के बाद वहाँ से साधन न होने से करीब आधा किलोमीटर स्टॉप तक पैदल आई......
बस को पीछे से ही आना था.....मगर तब तक मिली नहीं...सोचा अगले स्टॉप तक पैदल ही चल लूँ.......
चौराहा क्रास करते हुए एक 10-11साल की बच्ची ने भी दौड़कर मेरी आड़ लेते हुए रोड क्रास कर ली ......वो मेरे बराबर चलने लगी....
स्टॉप पर बस नहीं दिखी और मौसम में ठंडक थी तो रुकने से अच्छा पैदल चलना लगा....बिना इंतजार किए चलती रही ....
मेरी नज़र बगल में पड़ी तो वो बच्ची मेरे पास ही चलती दिखी ......मैंने उससे पूछा ...कहाँ जा रही हो?
बोली -माँ के पास
-माँ कहाँ है?
-साड़ी की दूकान में काम करती है
-अच्छा!,स्कूल जाती हो?
-हाँ ,
-कौनसी कक्षा में हो?
-छठी
-नाम क्या है?
-हर्षिता
उसके हाथ में गुच्छे में चाबियां थी..... मुझे लगा रोज़ स्कूल से आकर माँ के पास चली जाती होगी,मैंने सहज ही पूछा रोज़ जाती हो?या आज माँ को आने में देर हो गई?
बोली माँ 9 बजे आएगी,आज ही से काम पर गई है......
अच्छा! कहते हुए मैं चलती रही....एक दो बार उससे नज़रें मिली तो मुस्कुरा दी......
कुछ आगे चलने पर उसके चहरे पर घबराहट दिखी .....नज़र मिलते ही उसने पूछा यहाँ बालमंदिर कहाँ है?
मैंने कहा-इधर तो कोई बालमंदिर नहीं है? क्यों?
घबरा कर बोली-उसके सामने साड़ी की दूकान में काम करने गई है माँ आज ...तिलकनगर में
-अरे! क्या नाम है साड़ी की दूकान का?
नहीं मालुम! कहते हुए उसकी आँखों में आँसू आ गए .... रुक गई मैं
मैंने सर पर हाथ फेरते हुए पूछा-माँ के पास फोन है?
-हाँ
-नंबर?
-नहीं मालुम!
-माँ का नाम ?
-बबीता ... अब रोने लगी थी वो ....

ओह! .....अब मुझे समझ आ गया कि रास्ता भूल गई....
सूझ नहीं रहा था क्या करूँ.... उसे चौराहे से घर पता था......काम करने  गाँव से कुछ दिन पहले ही आया है परिवार इस शहर में .......
मैंने कहा- घर से क्यों निकल आई?जबाब मिला ..चौराहे पर घर है ,मुझे अकेले डर लग रहा था.
अब तक मैं भी थक चुकी थी ..उसे वापस चौराहे तक छोड़ना उचित नहीं लगा मुझे......और जब माँ -पिता  9 बजे तक ही पहुचेंगे तब तक और डरेगी ...सोचकर मैंने कहा- मेरेे घर चलो....गाड़ी लेकर वापस तुम्हारे घर तक छोड़ दूँगी...
अनजाने विश्वास के साथ वो मेरे साथ चलने लगी....
घर आकर उसे खाने के लिए पूछा ,मना कर दिया उसने ..केला दिया खाने को ..खा लिया उसने ...
एक्टिवा ली और चल पड़ी उसे लेकर ..... मुझे ध्यान आ रहा था कि तिलक नगर में शायद बालमंदिर मिल जाए ...
कुछ दूर जाने पर तिलकनगर बाल मंदिर नाम से ही बोर्ड दिख गया ..उसे दिखाया और पूछा ये स्कूल है? यहाँ पढ़ती हो ...
उसने हाँ में सिर हिलाया ..मैंने सोचा चोकीदार से पूछा जाए ..और अन्दर गई ...चौकीदार पहचान गया बोला ..आज मां लेकर आई थी इसे .... तभी स्कूल छूटा था सारी शिक्षिकाएं घर के लिए निकल रही थी ,एक शिक्षिका की ओर इशारा करते हुए चौकीदार ने कहा उन मेडम से पूछ लीजिए ...मैंने बात कि ,पता चला हाँ आज ही एडमिशन के लिए माँ इसे लेकर आई थी ...पर फ़ीस के पैसे न होने से फ़ार्म लेकर ही गई ..भरकर वापस नहीं दिया .....
तो कोई संपर्क सूत्र हाथ नहीं लगा मुझे .....
कुछ और प्रयास करते हुए उस रास्ते की कुछ साड़ी की दूकाने दिखाती रही कि शायद पहचान जाए ...पर नहीं ....
अन्त में यही तय किया कि जिस चौराहे पर मिली वहाँ तक ले जाकर घर छोड़ दूँ और आस-पडो़स में बता दूँ कि ध्यान रखे .... मैं वापस मुड़कर चली ...तभी एक गली को पार करते हुए वो चिल्लाई....- ये रही दूकान !
मैं दूकान के सामने आकर रूकी ..गाड़ी से उतर कर वो सीधे माँ के पास भागी ....

बाद में मैंने अन्दर जाकर माँ से बताया सारा घटना क्रम ...उसकी आँखों में नमीं उतर आई ... मेरी तरफ़ कॄतज्ञता और बेटी की तरफ शिकायत भरी नजरों से देखते हुए उसने कहा -आपने बहुत अच्छा किया ...मैंने उसे डाँट भी लगाई कि बेटी को अब तक तुम्हारा फोन नम्बर भी याद नहीं और दूकान का नाम भी तुमने लिखकर दिया .... और वो घर नहीं रहना चाहती ,तो साथ लेकर आओ ... सेठ से अनुमति लेकर ...और स्कूल भेजने में क्या परेशानी है ? पिताजी क्या करते हैं  इसके ?..... एक साथ सब कुछ पूछ -बोल दिया मैंने....
आजू-बाजू के ग्राहक भी देख सुन रहे थे ...

- वो भी काम करते हैं ...नहीं करते ..... कुछ भी समझ लीजिए आप ..... मैं अपनी बेटी को स्कूल भेजना चाहती हूँ ,और पास में ही भेजना चाहती हूँ ताकि वो मेरे पास ही रहे ...वैसे २ साल की थी तब से अकेले ही छोड़कर काम पर जाती हूँ ...पर ये जगह नईं है अभी शायद इसलिए डर गई मैडम जी ......
.......
- स्कूल की फ़ीस ?
- है तो ८००० पर किस्त में देना है ३५०० अभी ..मेरे पास नहीं है बताया तो उन्होंने कहा १००० तो अभी करना ही पड़ेंगे ...बाकि बाद में करते रहना ...
मैंने कहा- अभी मेरे पास पैसे नहीं है ...अपना फोन नम्बर दो ...मैं शाम तक वापस आकर १००० दे दूँगी ...तुम कल से स्कूल भेजो ,और अपने साथ ही रखे इसे .....

......
९ बजे तक समय था उसका ..मैं जब गई तो ८:३० बज रहे थे ....लेकिन वो निकल चुकी थी .... दूकान वाले ने भी साथ में बेटी होने से ८:१० पर ही छुट्टी दे दी थी उसे .......उसने बताया -आठ दिन से काम के लिए चक्कर लगा रही थी ..शुरू से ही पूछा कि बेटी का रहने का इन्तजाम क्या ? .... कर  लो ...स्कूल भी उसने ही बताया लेकिन महिला ने सिर्फ़ ये कहा कि हो गया एडमिशन .....  उसे कुछ परिचय पत्र भी लाने को कहा था तो आज कहा कि लाना भूल गई .....
आज ही पहला दिन था .... कुछ भी कह पाना ,विश्वास करना मुश्किल है ....

 बहुत बार फोन ट्राय किया ,नहीं उठाया उसने ... दूकान वाले को ११०० रूपए देकर कह आई हूँ कि कल आए तो उसे दे दे और पहले बेटी को स्कूल भेजे .....
दूकान वाले ने कार्ड दिया है .... कल सब कुछ ठीक हो बस ! .....


११/८/१५
कल लिखा था ..... और आज सुबह से दिमाग में वो लड़की ही थी ...स्कूल जाते हुए बस स्टॉप से ही फिर फोन ट्राय किया दो-तीन बार में उठा लिया बबीता ने फोन .... मैंने कहा- तुम आज जाओगी न! अपनी बेटी को स्कूल जरूर भेजना ,मैं पैसे दे आई हूँ दूकान पर ...
हाँ, कहा उसने...साथ ही ये - बहुत-बहुत धन्यवाद आपका मैडम .....
स्कूल से छूटते ही ...दूकान फोन किया - जबाब मिला -- जी ,मैंडम आई थी वो अभी १०००/-- दिये हैं १००/- बाकि है.... स्कूल में एडमिशन करा दिया है उसने बेटी का ....
मन कहता है -ईश्वर उसकी देखभाल करना ......जाने क्यों इतना करीब लगी मुझे वो ..

7 comments:

  1. Vaah bajrangi bhaijaan ! Ishvar ese avsr de or aap uvhen poora karen isse badi baat or kya hogi ! Proud of you

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  2. Vaah bajrangi bhaijaan ! Ishvar ese avsr de or aap uvhen poora karen isse badi baat or kya hogi ! Proud of you

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  3. मायारा की नानी दयालु हैं। हे ईश्वर! इनकी भेंट जरूरतमंदों से हो मगर कभी स्वार्थी लोगों से न हो।

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  4. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 13-08-2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2066 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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  5. आपको बहुत बधाई

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  6. वंदन। ईश्वर उन्हें सलामत रखे, और आपको भी।

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  7. बेहतरीन कार्य किया आपने ....पर ज़माना खराब है !

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