5जनवरी २०१६ को स्कूल को अन्तत: विदा कर दिया ...वास्तव में इस सत्र के शुरू से ही घर में चर्चा चालू थी कि अब और काम न करो बेटे वत्सल को भी लगने लगा था कि अब तक हमने साथ समय ही नहीं बिताया ..मतलब वैसा समय जैसा बिताना चाहिए था .....
सात साल बहुत कम उम्र होती है बच्चे के बड़े हो जाने की ... और वो इतना शरारती था कि आज भी सब उसका बचपन याद करते हैं और जब भी मुझे कोई मिलता है यही पूछता रहा कि अब भी वैसा ही है या शान्त हो गया ....
उसका जन्म व्यतिपात में हुआ , ग्रह ,नक्षत्र तो कुछ समझती नहीं मैं लेकिन जन्म के समय शान्ति पूजा करवाई थी मां के यहाँ ....
जब छोटा था तो कभी गरम ओवन पर हाथ रख दिया तो कभी तेल का १५ लीटर का तेल उंडेल दिया , कभी पल्लवी के ऊपर कंबल डालकर उसकी कुटाई कर दी तो कभी स्केच पेन को पानी में घोल कर होली के रंग बना लिए ....
लेकिन उसकी समझदारी वाली बातों पर कम ही नज़र पड़ी मेरी ....
सुनिल के एक्सीडेन्ट के समय करीब चार महीने तक बच्चों की स्कूल छूट गई थी, तब बहुत समय अस्पताल में बीतता दोनों बच्चों का ... लगभग पूरा दिन.....
एक दिन मैंने उसे छोटी बहन पल्लवी को कहते सुना कि -पता है अब शायद हम स्कूल नहीं जा पाएंगे , क्योंकि पापा की दवाई में बहुत बार मम्मी पैसे देती है .....रोज-रोज ....
और उसके दूसरे ही दिन मैंने नागपूर में मार्डन स्कूल के प्रिंसिपल साहब जोशी जी से मिलकर बच्चों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया ,बिना किसी देरी के .....
याद आ रहा है रिक्शे वाले भैया का ये कहना कि- दीदी ये रिक्शे से उतर जाता है पीछे-पीछे दौड़ता है .... और पल्लवी का उसके बचाव में ये कहना कि- मम्मी भैया चढ़ाई पर ही उतरता है .......
अब तो बहुत बड़ा हो गया है ..:-)
अब वाकई लगने लगा कि हम साथ नहीं रहे ..समय नें हमें बतियाने का मौका ही नहीं दिया ....
तो अबकि अपनी दुनिया में लौट जाने का मन हो आया है .....
उससे उसके बचपन के किस्से कहने हैं .....
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteमुझे याद नहीं आता कि कब किसी ब्लॉग पर इस तरह कमेन्ट करने का मन किया हो...
ReplyDeleteसच में बीटा वक़्त कभी नहीं आता, तो हमें ऐसा वक़्त भी नहीं छोडना चाहिए कि फिर बाद में हमें इस वक़्त के बारे में भी यही मलाल रह जाये...
बहुत मुश्किल होता है अपनों के साथ वक़्त बिताना, खुद का सोचता हूँ तो खयाल आ ही जाता है... वैसे भी ज़िंदगी बस कुछ खूबसूरत लम्हों को समेटके मुस्कुराने का ही नाम है, बाद में किसी को कोई मलाल न रह जाये... आइए मिलते हैं... :)
बहुत अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने ।
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 04-02-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2242 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
आगे का जीवन रज्ज के जिएं और कभी समय निकाल कर एक एप्पी मेरे साथ भी पिएं, :) सेकेंड इनिंग प्रारंभ होने पर शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteहम्म
ReplyDeleteहर पल को बटोरना
हर पल को जीना
परिवार को क्वालिटी टाइम देना...सब जिंदगी की भागदौड़ में रह ही जाता है।
लेकिन दूसरा मौका हर किसी को नही मिलता।
एन्जॉय 😀😃
हम्म
ReplyDeleteहर पल को बटोरना
हर पल को जीना
परिवार को क्वालिटी टाइम देना...सब जिंदगी की भागदौड़ में रह ही जाता है।
लेकिन दूसरा मौका हर किसी को नही मिलता।
एन्जॉय 😀😃
बीती उम्र कुछ इस तरह कि खुद से हम न मिल सके
ReplyDeleteजिंदगी का ये सफ़र क्यों इस कदर अंजान है
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जब हाथों हाथ लेते थे अपने भी पराये भी
बचपन यार अच्छा था हँसता मुस्कराता था
बारीकी जमाने की, समझने में उम्र गुज़री
भोले भाले चेहरे में सयानापन समाता था
Superb.
पुरानी यादें, पर वत्सल इतना शरारती की कभी नहीं लगा मुझे..
ReplyDeleteपुरानी यादें है याद तो आयेगी सर कृपया मेरे इस ब्लॉग Indihealth पर भी पधारे
ReplyDeleteबच्चे तो शरारतों का दूसरा नाम हैं ...शरारते करते-करते कब समझदार बन जाते हैं पता ही नहीं चलता ....
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