Wednesday, July 13, 2016

झंक्रॄत मन....


नन्हीं सी बूँदो
तुम जो बरसोगी
धरा खिलेगी..

सावन आया
पिया कहीं न जाना
झूला झूलेंगे..

ओ री बरखा
जो भिगोई चुनरी
फ़िर तपूंगी....

घोर गर्जन
घबराए से पंछी
रूको बदलों...

मैं हूँ उदास
बरसेंगी अँखियाँ
पूरे सावन..

निकली धूप
फ़िर छुपे बादल
फ़िर से चिंता...

छाते के नीचे
फ़ुहारों के बीच में
मैं और तुम...

जलतरंग
टिप टिप टिपिर
झंक्रॄत मन....

-अर्चना 

1 comment:

  1. उम्दा हाईकू अर्चना जी |

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