Wednesday, July 13, 2016

ये बारिशों के दिन। ..

ये बारिशों के दिन। ..
चुपचाप रहने के दिन ....

मुझे और तुम्हें चुप रहकर
साँसों की धुन पर
सुनना है प्रकृति को ....
. उसके संगीत को ...
झींगुर के गान को ..
मेंढक की टर्र -टर्र को...
कोयल की कूक को...
और अपने दिल में उठती हूक को। ....
....
बोलेंगी सिर्फ बुँदे
और झरते-झूमते पेड़
हवा  बहते हुए इतराएगी...
और
अल्हड़ सी चाल होगी नदिया की

चुप रहकर भी
सरसराहट होगी
मौन में भी एक आहट होगी
...
उफ़! ये बारिशों के दिन ..
चुपचाप रहने के दिन।

10 comments:


  1. अपना अलग ही रंग है बारिश का ..
    बहुत सुन्दर सामयिक रचना .. ..

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 14 जुलाई 2016 को में शामिल किया गया है।
    http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमत्रित है ......धन्यवाद !

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  3. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति आशापूर्णा देवी और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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  4. वाह ..क्या खूब याद आये ..बारिशों के दिन ...बहुत सुन्दर दीदी

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  5. एक यह भी रंग है बारिशों का...

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  6. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (15-07-2016) को "आये बदरा छाये बदरा" (चर्चा अंक-2404) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. बारिश के दिनों का मजा ही कुछ और है। सुंदर प्रस्तुति।

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