चलते-चलते ,चलते ही जाना है ,जाने कितनी दूर तलक
बदलते -बदलते आखिर कितना बदल गए हम
कि अपने जमाने से कोसों आगे निकल गयी ये जिन्दगी...
मिटाते-मिटाते भी नामोंनिशां न मिटा पाएंगे वे मेरा
क्यों कि कमेंट-कमेंट बन नेट पर विचरती है ये जिन्दगी ...
जाते-जाते अनगिनत दुआएं देकर जाने की ख्वाहिश है मेरी
कि खुदा के घर में भी दुआओं के सहारे बसर कर लेगी ये जिन्दगी...
आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति डॉ. सालिम अली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।
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