Saturday, November 12, 2016

ये जिन्दगी...

चलते-चलते ,चलते ही जाना है ,जाने कितनी दूर तलक
कि सांसों के घोड़ों पर सवार हो सफ़र पर निकल पड़ी ये जिन्दगी...

बदलते -बदलते आखिर कितना बदल गए हम
कि अपने जमाने से कोसों आगे निकल गयी ये जिन्दगी...

मिटाते-मिटाते भी नामोंनिशां न मिटा पाएंगे वे मेरा
क्यों कि कमेंट-कमेंट बन नेट पर विचरती है ये जिन्दगी ...

जाते-जाते अनगिनत दुआएं देकर जाने की ख्वाहिश है मेरी
कि खुदा के घर में भी दुआओं के सहारे बसर कर लेगी ये जिन्दगी...

1 comment:

  1. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति डॉ. सालिम अली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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