मेरे गाँव की नदी
सूख गई मेरे देखते-देखते
जाती थी माँ जहाँ-
कपडे का गट्ठर सिर पर रख
कपडे धोने
और बताया करती थी हमें-
बुआ के साथ की गपशप और किस्से
मैंने देखा था नदी को
गणगौर पर्व में और
संजा पर्व में -
जब विदा करती थी उसे
गले लगा -उसी नदी में
मेरी बेटी सिर्फ जानती है
कि मैं विदा किया करती थी
गणगौर और संजा
लेकिन उसकी बेटी?
अपनी "मायरा"?
सुनेगी कहानियों में-
गणगौर,संजा,नदी और नानी के किस्से!!!
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 03 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत सुंदर ! सत्यता के पट खोलती। धन्यवाद
ReplyDeleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सैम मानेकशॉ और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है।कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.......
ReplyDeleteवाह!!!
मेरे गाँव की नदी सूख गयी...
लाजवाब
http://eknayisochblog.blogspot.in
ये जिम्मेवारी हमारी है इनको बचा के रखने की जो हम नहीं कर पा रहे ... अच्छी रचना ...
ReplyDeleteयथार्थ का चित्रण करती रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर.......
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