कभी अंदर
कभी बाहर
अंगूठा होता है- हस्ताक्षर
कभी दर्पण
कभी अर्पण
अंगूठे में होता है- समर्पण
अंगूठा होता है- एकलव्य
कभी श्रव्य
कभी द्रव्य
कभी भव्य
अंगूठे से बनता है - कोई विशेष
तो कोई
रहता है शेष। ..
अंगूठा करता है-
किसान ,लेखक के कर्म
समझता है -उनका मर्म
अंगूठा होता है-
उँगलियों की जान
हाथों की शान
कभी अपमान
कभी सम्मान
और अब अंगूठा ही है -
आपकी
मेरी,
-अर्चना
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, "काम की बात - ब्लॉग बुलेटिन “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteअब अँगूठे में है सबकी कुंडली
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
बहु आयामी हो गया है आज तो अँगूठा.
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