छुप गया कम्बल
छुपा दी गयी रजाई
रसभरी लीची ,हरे -काले अंगूर,
और रसभरा तरबूज खाओ
केरी-पुदीने का शरबत
और आम का ठंडा रस
कूलर वाले कमरे में
पियो चटखारे ले लेकर
लू भरी दोपहरी को छकाओ
इमली की चटनी
और खीरे का रायता
नानी को पटाकर,
नानी से बनवाओ
दोपहर में नानी की बात मानो
बाहर न निकलो
शाम को नानी को साथ घुमाओ
खुद आईस्क्रीम खाओ
नानी को ठंडी-ठंडी
लस्सी पिलाओ। ..
बस!! ऐसे ही मस्ती में
गर्मी को दूर भगाओ !!!
-अर्चना
वाह, मज़ेदार कविता
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर वर्णन ग्रीष्म काल का ,आभार।
ReplyDeleteक़स्बाई परिवेश की कविता पढ़कर अच्छा लगा। शब्दों में इतनी सरलता कि बच्चे भी समझ सकें। बधाई।
ReplyDeleteयही तो हैं गर्मी के मज़े-बस एक डर, बिजली न चली जाय कहीं .
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