भूल गए हैं बादल अब बरसना वहाँ ,
खूब बरसती है आसमान से आग जहाँ....
भागते मेघों का गर्जन भी दब जाता है
काली बदली को पवन जाने कहाँ उड़ा ले जाता है
मोर,पपीहे,कोयल सब अब मौन मौन ही रहते हैं
नदिया ठहरी,झीलें सूखी,झरना भी नहीं गाता है
थिरकती बूँदों के नृत्य कौशल को देखने
हर बूढ़ा पेड़ व्याकुल नजर आता है...
बहुत सुंदर कविता.जहाँ बारिश की जरूरत है वहां आग बरस रहे हैं.
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब रचना.
ReplyDeleteरामराम
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
simply..वाह !
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